Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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६ : पद्मपरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
मान् की उत्पत्ति की कथा कही गयी है। १८चे पर्व में पवनंजय तथा अंजना के मिलाप का वर्णन है। १९वें पर्व में वरुण के विरुद्ध होने पर रावण का सब राजाओं को आमन्त्रण देना, हनुमान का उसमें जाकर पराक्रम दिखाना वर्णित है। २०वें पर्व में चौबीस तीर्थङ्करों तथा अन्य शलाका पुरुषों का वर्णन है। २१वें पर्व में मुनिसूयतनाथ तथा उनके वंश का वर्णन, इक्ष्वाकु वंका के प्रारम्भ का वर्णन तथा कीतिघर और सुकोमल मुनि की दीक्षा आदि का उल्लेख है। २२वें पर्व में की सिघर तथा सुकोशल मुनि का तप, उनकी सदगति तथा सौदास की कथा कही गई है। २३वे पर्व में नारद द्वारा राजा दशरथ और जनक को रावण के दुर्विचार का संकेत तथा विभीषण द्वारा दशरथ और जनक के पुतलों के सिर काटे जाने का वर्णन है। २४वे पर्व में कैकया और उसकी कलाओं का विस्तृत परिचय, दशरथ का काकया के साथ विवाह पणित है। २५वें पर्व में राजा दशरथ के चार पुत्रों की उत्पत्ति का वर्णन है। २६ पर्व में राजा जनक के विदेहा से सोता और भामण्डल को उत्पत्ति, भामण्डल का अपहरण तथा चन्द्रगति विद्याधर । यहाँ उसके वृद्धि को प्राप्त होने का वर्णन है । २७वें पर्व में म्लेच्छ राजाओं द्वारा जनक के देश में उपद्रव करने तथा दशरथ द्वारा राजा जनक की सहायता किये जाने के कारण म्लेच्छों की पराजय तथा जनक का दशरथ के पुत्र राम के लिए अपनी पुत्री सीता देने का निश्चय अंकित । पर्व में नारद के कारण भामण्डल को सीता के प्रति आमक्ति, जनक का मायामयी घोड़े द्वारा हरा जाना तथा जनक द्वारा यदि राम वसावर्त धनुष चढ़ा देंगे तो सीता ले सकेंगे अन्यथा भामण्डल लेगा इस प्रतिज्ञा का वर्णन है। २९३ पर्व में ददारथ द्वारा आष्टान्हिक महापर्व का मनाया जाना तथा सर्वभूतहित मुनि के आगमन का वर्णन है। ३० पर्व में भामण्डल का सौता तथा जनक से मिलन बतलाया गया है। ३१वें पर्व में शरण के पूर्वभव, राम के राज्याभिषेक की घोषणा, कैक्रया को वर प्रदान, भरत का राज्याभिषेक तथा राम लक्ष्मण तथा सीला का वन गमन वर्णन प्रमुख विषय है। ३२वें पर्व में केकया और भरत का राम को लौटाने का प्रयास तथा निराश होकर भरत का राज्यशासन संभालना वणित है। ३३३ पर्व में वनकर्ण को रक्षा तथा सिंहोदर-वचकर्ण को मैत्री कराकर राम-लक्ष्मण के आगे बढ़ने का कथन किया गया है । ३४खें पर्व का प्रतिपाद्य विषय राम-लक्ष्मण द्वारा म्लेच्छ राजा को आज्ञाकारी बनाकर बालखिल्य को बन्धनमुक्त कराना है। ३५३ पर्व में पक्षपति द्वारा राम-लक्ष्मण के निवास के लिए रामपुरी की रचना तथा राम का उसमें निवास करना वणित 21 ३६वें पर्व में लक्ष्मण का वनमाला से विवाह होता है। ३७ पर्व में रामलक्ष्मण नर्तकी के वेष में जाकर अतिवीर्य को बन्धन में बांधकर मुक्त करते है