Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 17
________________ पद्मचरित का परिचय : ५ हैं और कुछ दोनों के प्रतिकूल होकर तीसरी परम्परा की ओर संकेत करती हैं । इसके कुछ उदाहरण भारतीय ज्ञानपीठ के सम्पादक डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये तथा डाँ० हीरालाल ने दिये हैं । ११ पं० पन्नालाल साहित्यचार्य ने भी इस पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। इसे दुहराना यहाँ पिष्टपेषण ही होगा । पद्मचरित की कथावस्तु RO पद्मचरित की कथावस्तु १२३ पर्वो में विभक्त है। इनमें कुछ पर्वतो बहुत बड़े-बड़े हैं और कुछ छोटे हैं, कुछ न बहुत बड़े हैं न बहुत छोटे । प्रथम पर्व में मङ्गलाचरण, सज्जन दुर्जन प्रशंसा तथा ग्रन्थ की संक्षिप्त कथावस्तु वर्णित है । द्वितीय पर्व में राजा श्रेणिक का विपुलाचल पर भगवान् महावीर के समवसरण में जाने का वर्णन है । तृतीय पर्व में राजा श्रेणिक का गौतम गणधर से रामकथा के विषय में जिज्ञासा प्रकट करना गौतम द्वारा कथा सुनाने का मादवासन, कुलकरों की उत्पत्ति, ऋषभदेव का जन्म तथा उनके दीक्षा कल्याणक आदि का वर्णन है । चतुर्थ पर्व में ऋषा यह और आहार लेना, भगवान् को कैवल्य की प्राप्ति होना, भरत बाहुबली युद्ध तथा ब्राह्मणवर्ण की सृष्टि विषयक चर्चा है। पंचम पर्व में चार महावंशों की बंधावलि, अजितनाथ भगवान् का वर्णन तथा सगर चक्रवर्ती का वर्णन है । पर्व में वानरवंश का विस्तृत वर्णन है। सप्तम पर्व में रथनूपुर के राजा इन्द्र का वर्णन तथा राक्षस वंश में दशानन की उत्पत्ति और प्रभाव वर्णित है। नवम पर्व में बालि, सुग्रीव, नल, नील आदि की उत्पत्ति, रावण द्वारा कैलाश पर्वत का उठाया जाना तथा बालि के प्रभाव की चर्चा है । दशम पर्व में सुग्रीव का सुतारा से विवाह, रावण का दिग्विजय के लिए निकलना तथा राजा सहस्ररश्मि की जलक्रीड़ा, दीक्षा आदि का वर्णन है । ११वें पर्व में हिसायज्ञ का इतिहास दिया गया है । १२ में रावण द्वारा इन्द्र की पराजय तथा १३वें पर्व में इन्द्र का दीक्षा लेने, निर्वाण प्राप्त करने का वर्णन है। १४वें पर्व में अनन्तबल मुनिराज का केवलज्ञान तथा रावण द्वारा जो परस्त्री मुझे नहीं चाहेगी, मैं उसे बलात् नहीं चाहूँगा, इस प्रकार की प्रतिज्ञा ग्रहण का उल्लेख है । १५ पर्व में पचनज की उत्पत्ति और उसका अंजना के साथ विवाह वर्णित किया गया है । १६ वें पर्व में रावण का वरुण के साथ युद्ध, पवनजय का उसमें जाना, अंजना के प्रतिविद्वेष श्याम तथा संभोग श्रृंगार का अंजना का गर्भ धारण करना, अपमानित कर घर से १९. पद्मपुराण, पू० ७ ( प्रस्तावना) । २०. वही, पृ० २८-३० ( प्रस्तावना ) | वर्णन है । १७वें पर्व में निकाला जाना तथा हनु

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