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प्रस्तावना
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परोक्ष ही कहा गया है । जनदर्शन में संव्याहारिक प्रत्यक्षके जो मतिज्ञानरूप है, भेद और प्रभेद सब मिलकर ३३६ बताये गए हैं। जिन्हें एक नक्शे के द्वारा पहले बता दिया गया है। १२. मुख्य प्रत्यक्ष
दार्शनिक जगतमें प्रायः सभीने एक ऐसे प्रत्यक्षको स्वीकार किया है, जो लौकिक प्रत्यक्षसे भिन्न है और जिस अलौकिक प्रत्यक्ष', योगिप्रत्यक्ष या योगिज्ञान के नामसे कहा गया है। पद्यपि लिसी किसीन इस प्रत्यक्षमें मनकी अपेक्षा भी वणित को ई तचापि योगजधर्मका प्रामुख्य होने के कारण उसे अलौकिक ही कहा गया है। कुछ हो हो, यह अवश्य है कि प्रात्मामे एक अतीन्द्रिय ज्ञान भी सम्भव है। जैनदर्शनमें ऐसे ही प्रात्ममाय सापेक्ष साक्षात्मक अतीन्द्रिय ज्ञानको मुख्य प्रत्यक्ष या पारमार्थिक प्रत्यक्ष माना गया है और जिस प्रकार दूसरे वर्शनों में अलौकिक प्रत्यक्षके भी परिचित्तमान, तारक, कैवल्य या युक्त, युञान प्रादिरूपसे भेद पाये जाते है उसी प्रकार जनदर्शनमें भी विकल, सकल अथवा अवधि, मनःपर्षय और कंवलज्ञका रूपमे मुख्यप्रत्यक्षके भी भेद वणित किये गये है। विशेप यह कि नयायिक और वशषिक प्रत्यक्षानानको अलीन्द्रिय मानकर भी मका अग्नि कयन नित्यज्ञानात्रिकरण ईश्वरमें ही बतलाते हैं। पर जैनदर्शन प्रत्येक प्रात्मा में उसका सम्श्व प्रतिपादन करता है और उग विशिष्ट प्रात्मगुडिसे पंद्रा होनेवाला बतलाता है । प्रा० धर्मभूषणने भी अनेक युक्तियों के साथ मे ज्ञानका उपपादन एनं समर्थन किया है । १२. सर्वज्ञता---
भारतीय दर्शनशास्त्रों में सर्वज्ञताफा बहुत ही गापक और विस्तृत १ "एवं प्रत्यक्षं लौकिकालौकिकभेदेन द्विविधम् ।"-सिद्धान्तमु०पृ० ४७ । २ "तार्थभावनाप्रकर्षपर्यन्त जें योगिप्रत्यक्षम् ।"-न्यायविन्दु पृ. २० ।