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न्याय-दीपिका
अग्नि प्रादि का काम हो जावेगा। इस कारण जाने इये साधन से होने वाला साय का ज्ञान हो सायविषयक प्रशाम को दूर करने से अनुमान है, लिङ्गज्ञानाविक नहीं। ऐसा अकलङ्काधि प्रामाणिक विद्वान कहते हैं। तात्यय यह है कि मायमान यम को अनुमान में 5 कारण प्रतिपादन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन दर्शन में साधन को अनुमान में कारण नहीं माना, अपितु साधनज्ञान को ही कारण माना है।
साधन का लक्षण -
यह साधन क्या है, जिससे होने वाले साध्य के ज्ञान को अनु10 मान कहा है ? अर्थात्-सरधन क्या लक्षण है ? इसका असर यह
है-जिसकी साध्य के साथ अन्यथानुपपत्ति (अविनाभाव) निश्चित है उसे साधन कहते हैं। सात्पर्य यह कि जिसकी साध्य के प्रभाव में नहीं होने रूप व्याप्ति, अविनाभाव प्रादि नामों वाली साध्यान्यथानुप
पत्ति-- साध्य के होने पर ही होना और साध्य के प्रभाव में नहीं 15 होना--तकं नाम के प्रमाण द्वारा मिर्णीत है वह साधन है । श्री कुमार.
नन्दी भट्टारक ने भी कहा है---"अन्यथानुपपत्तिमात्र जिसका लक्षण है उसे सिङ्ग कहा गया है।"
साध्य का लक्षण
वह साध्य क्या है, जिसके अविनाभाव को साधन का लक्षण 20 प्रतिपादन किया है। ? अर्थात्-साध्य का क्या स्वरूप है ? सुनिये
शक्य, अमित और अप्रसिद्ध को साध्य कहते हैं। शाक्य यह है जो प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित न होने से सिद्ध किया जा सकता है। अभिप्रेत वह है जो वानी को सिद्ध करने के लिए अभिमत है
इष्ट है। और प्रसिद्ध वह है जो सन्देहाविक से युक्त होने से 25 अनिश्चित है। इस तरह जो शक्य, अभिप्रेत और अप्रसिद्ध है वहीं
साध्य है।