Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 333
________________ २०० स्याय-दीपिका अनेकान्तात्मकता वस्तु में प्रवामितरूप से प्रतीत होती है और सलिए वह पोसारिकल्पित सर्वपा एकान्त के प्रभाष को अवश्य सिट करती है। पाडा-पह अनेकान्तास्मकता क्या है, जिसके बल से वस्तु में 5 सर्वथा एकान्त के प्रभाव को सिद्ध किया जाता है? समाधान-सभी जीवावि वस्तुओं में जो भाव-प्रभावरूपता. एकअनेकरूपता और नित्य-अनित्यरूपता इत्यादि अनेक धर्म पाये जाते हैं उसो को अनेकान्तात्मकता अथवा अनेकान्तरूपता कहते हैं। इस तरह विधिरूप हेतु का दिग्दर्शन किया। __J0 प्रतिषेधरूप हेतु के भी दो भेद है.-१ विधिप्ताषक और २ प्रतिषेषसापक। उनमें विधिसाधक का उदाहरम इस प्रकार है'इस जीव में सम्यवस्व है, क्योंकि मिष्या अभिनिवेश नहीं है।' यहाँ 'मिथ्या अभिनिवेश नहीं है। यह प्रतिवेषरूप हेतु है और वह सम्यादर्शन के सद्भाव को सापता है, इसलिए वह प्रतिषेषरूप रिषि___15 साधक हेतु है। पूसरे प्रसिषेषरूप प्रतिषेषसाषक हेतु का उदाहरण यह है'यहाँ धुमां नहीं है, क्योंकि अग्नि का प्रभाव है।' यहाँ 'मग्नि का मभाव' स्वयं प्रतिसेपहप है और वह प्रतिधरूप ही धूम के प्रभाव को सिद्ध करता है, इसलिए 'पग्नि का प्रभाव' प्रतिवेष20 कप प्रतिषसापक हेतु है। इस तरह घिषि और प्रतिषरूप से दो प्रकार के हेतु के कुछ प्रभेदों का उदाहरण द्वारा वर्णन किया। विस्तार से परीक्षामुख से जानना चाहिए। इस प्रकार प्रोत लक्षण वाले ही हेतु साध्य के गमक है, अन्य महीं । प्रतियो अन्यथानुपपत्ति लक्षण वाले नहीं हैं ये साष्य के गमक नहीं है, जोकि 25 वे हेत्वाभास हैं।

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