________________
तीसरा प्रकाश
२११ भेद हैं--१ सिद्धसाधन और २ धामितविषय। उनमें पहले का उदाहरण यह है—' शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय होना चाहिए, क्योंकि वह शब्द है'। यहां 'श्रोत्रेन्द्रिय की विषयता' रूपसाध्य शब्द में आबनप्रत्यक्ष से ही सिद्ध है। अतः उसको सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त किया गया 'Tarrrा' हेतु सिद्धसाधन नाम का अकिञ्चित्कर 5 हेत्वाभास है । बाचितविषय नामका प्रकिञ्चित्कर हेत्वाभास अनेक प्रकार का है। कोई प्रत्यक्षवाधितविषय है। जैसे— 'अग्नि अनुष्ण-ठंडी है, क्योंकि वह द्रव्य है। यहाँ 'व्यत्व' हेतु प्रत्यक्षवातिविषय है। कारण उसका को ठंडापन दिन है वह उपग्राहक स्पर्शनेन्द्रिय अन्य प्रत्यक्ष से बाधित है। अर्थात् प्रग्नि को 10 छूमे पर वह उष्ण प्रतीत होती है, ठंडी नहीं। अतः 'वव्यत्व' हेतु कुछ भी साध्यसिद्धि करने में समर्थ न होने से प्रकिञ्चित्कर है। कोई अनुमानबाधित विषय है । जैसे- 'शब्द अपरिणामी है, क्योंकि वह किया जाता है' यहाँ 'किया जाता' हेतु 'शब्द परिणामी है, क्योंकि वह प्रमेय है इस अनुमान से वातिविषय है । इस 15 सिये वह अनुमानबाधितविषय नामका किञ्चित्कर हेत्वाभास है । कोई श्रागमबाधित विषय है । जैसे– 'धनं परलोक में दुःख का देने वाला है, क्योंकि यह पुरुष के प्राश्रय से श्रधर्म' यहाँ 'धर्म सुख का देने वाला है' ऐसा श्रागम से उक्त हेतु बाधित विषय है । कोई स्ववचनवाषित विषय है। 20 जैसे – मेरी माता बन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भ नहीं रहता है। जिसके पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भ नहीं रहता है वह बन्ध्या कहो जाती है, जैसे— प्रसिद्ध बन्ध्या स्त्री यहाँ हेतु अपने वचन से वापितविषय हैं, क्योंकि स्वयं मोबून
होता है, जैसे
TST
धागम है, इस
हं और माता भी मान रहा है फिर भी यह कहता है कि 25
मेरी माता बन्ध्या है । मतः हेतु स्ववचनवाधितविषय नामका