Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 342
________________ तीसरा प्रकाश २१५ विस्तार से किया गया है। प्रतः विराम लेते हैं-उसका पुनः खान यहाँ नहीं किया जाता है। उपनय, मिगमन पौर उपनयाभास तथा निगमनाभास के लक्षण साधनवान रूप से पक्ष को दृष्टान्त के साथ साम्पता का कथन 5 करना उपनय है। जो-इसीलिए यह धूम दाम्मा है। साधन की वोहराते हुए साध्य के निश्चयरूप वचन को निगमन कहते है। जसे-धूम वाला होने से यह अग्नि वाला ही है। इन दोनों का प्रययाक्रम से-उपनय की अगह निगमन और निगमन को जगह उपनय का-कथन करना उपनयाभास और निगमनाभास हैं। अनुमान प्रमाण 10 समाप्त हुना। पागम प्रमाण का लक्षणप्राप्त के वचनों से होने वाले प्रर्यशान को प्रागम कहते हैं। यहां प्रागम' यह लक्ष्य है और शेष उसका लक्षण है। 'प्रयंज्ञान को प्रागम कहते हैं। इतना ही यदि प्रागम का लक्षण कहा जाय 15 तो प्रत्यक्षादिक में प्रतिध्याप्ति है, क्योंकि प्रत्यक्षाविक भी प्रर्षमान हैं। इसलिए 'वचनों से होने वाले' यह पद-विशेषण दिया है। 'वधनों से होने वाले' अर्थशान करे प्रागम का लक्षण कहने में भी स्वेच्छापूर्वक ( जिस किसी के ) कहे हुए भ्रमजनक पचनों से होने वाले प्रथया सोये हुए पुरुष के और पागल प्रदि के वाक्यों से 20 होने वाले 'नदी के किनारे फल है।' इत्यादि नानों में प्रतिव्याप्ति है, इसलिए 'प्राप्त' यह विशेषण दिया है। प्राप्त के वचनों से होने वाले ज्ञान को' मागम का लक्षण कहने में भी प्राप्त के पास्यों को सुनकर जो श्रावण प्रत्यक्ष होता है उसमें लक्षण की प्रतिष्याप्ति है. अतः 'अर्थ' यह पर दिया है। 'अर्थ' पद तात्पर्य में रूह है। 25

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