Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 348
________________ तीसरा प्रकाश २२३ लिये पर्यायों का गुणों से भैर है। अर्थात् पर्याय प्रौर गुण में यही भेद हे कि पर्याय शमवर्ती होती है भोर गुण सहभावो होते है तथा वे द्रव्य और पर्याय के साथ सर्वक रहते हैं। यद्यपि सामान्य और विशेष भी पर्याय है और पर्यायों के कथन से उनका भी कपन हो जाता है-उनका पृषक् कथन करने की प्रावश्यकता 5 नहीं है, तथापि सङ्केतज्ञान में कारण होने और जुदा जुदा शम्दव्यवहार होने से इस प्रागम प्रस्ताव में (पागम प्रमाण के निरूपण में) सामान्य और विशेष का पर्यायों से पथक निर्देश किया है। इन सामान्य और विशेषरूप गुण तथा पर्यायों का प्राश्रय द्रष्य है। क्योंकि "ओ गुण और पर्याय वाला है वह वध है" ऐसा 10 माचार्य महाराज का श्रादेश (उपवेश) है। बह द्रव्य भी 'सस्व' अर्थात् सत् ही है। क्योंकि "जो सच है वह द्रव्य है" ऐसा प्रका लवेव का वचन है। ब्रा भी संक्षेप में दो प्रकारका हैजीव प्रत्य और अजीव द्रब्य । और के दोनों हो तथ्य उत्पत्ति, बिमाश तथा स्थितिवान हैं, क्योंकि "जो उत्पाद, स्यय और धोव्य 15 से सहित है वह सत् है" ऐसा निरूपण किया गया है। इसका खुलासा इस प्रकार है :-जीव द्रव्य के स्वर्ग प्राप्त कराने वाले पुण्य कर्म ( देवगति, देवायु आदि ) का उदय होने पर मनुष्य स्वभाष का विनाश होता है, दिव्य स्वभाव का उत्पाद होता है और बैतन्य स्वभाव स्थिर रहता है। जीव द्रव्य यदि मनुष्यादि पर्यापों 20 से सर्वथा एकरुप ( अभिन्न ) हो तो पुण्य कर्म के उचय का कोई फल नहीं हो सकेगा; क्योंकि वह सदैव एकसा ही बना रहेगामनुष्य स्वभाव का विनाश मोर देव पर्याय का उत्पाद ये भिन्न परिणमन उसमें नहीं हो सकेंगे। और यदि सर्वथा भिन्न हो तो पुण्यवान-पुण्यकर्ता दूसरा होगा और फलवान—फलभोक्ता दूसरा, 25 इस तरह पुण्य कर्म का उपार्जन करमा भो म हो जायगा । परोप

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