Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 347
________________ २२२ न्याय-दीपिका सामान्य के मानने में उपर्युक्त कोई भी दूषण नहीं प्राता है। विशेष भी सामान्य की ही तरह यह स्यूस घट है' 'यह छोटा है' इत्यारि श्यावृस प्रतीति का विषयभूत स्टादि व्यक्तिस्वरूप ही है । इसी बात को भगवान माणिक्यनन्दि भट्टारक ने भी कहा है कि --"वह प्रय 5 सामान्य और विशेषम है।" परिणमन को पर्याय कहते हैं। उसके दो भेद हैं ---१ अर्थपर्याय प्रौर २ व्यञ्जनपर्याय । उनमें भूत और भविष्य के उल्लेख रहित केवल वर्तमानकालीम वस्तुस्वरूप को अर्थपर्याय कहते हैं अर्थात् वस्तुओं में प्रतिक्षण होने पालो पर्यायों को प्रर्थपर्याप कहते हैं । 10 प्राचार्यों ने इसे ऋजसूत्र नय का विषय माना है। इसी के एफ देश को मानने वाले क्षणिकवादी बौद्ध हैं। व्यक्ति का नाम व्यञ्जन है, और जो प्रवृत्ति-निवृति में कारणभूत जल के ले प्राने प्राविरूप प्रपंक्मिाकारिता है वह व्यक्ति है, उस व्यक्ति से युक्त पर्याय को व्यंजमा पर्याय कहते हैं। अर्याल जो पदार्थों में प्रवृत्ति और नित्ति जनक 15 जलानयन प्राधि प्रक्रिया करने में समर्थ पर्याय है उसे व्यंजनपर्याय कहते हैं। जैसे- मिट्टी माथि का पिड, स्थास कोश, कुशूल, घट और कपाल मादि पर्याय हैं। जो सम्पूर्ण द्रव्य में व्याप्त होकर रहते हैं और समस्त पर्यापों के साथ रहने वाले हैं उन्हें गुण कहते हैं । और वे वस्तुस्व, रूप, 20 गन्ध और स्पर्श प्रावि है। अर्थात् वे गण दो प्रकारके हैं-१ सामान्य मुग और २ विशेषगण । जो सभी द्रव्यों में रहते हैं वे सामान्य गण हैं और वे वस्तुरव, प्रमेयत्व प्रादि हैं। तथा जो उसो एक बज्य में रहते हैं ये विशेषगुण कहलाते हैं 1 जैसे-रूप-रसादिक । मिट्टी के साथ सदैव रहने पाले वस्तुत्व ३ रूपावि तो पिण्डावि पर्यायों के साथ भी 25 रहते है, किन्तु पिण्डादि स्थासाविक के साय नहीं रहते हैं। इसी

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