Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 345
________________ २२० न्या-दीपिका लक्षण' दूसरे शास्त्रों में प्रसिद्ध है, इस कारण उसका भी यहाँ तक्षण नहीं किया जाता है। अर्थ का लक्षण और उसका विशेष कथन अर्थ किसे कहते हैं ? अनेकान्त को कहते हैं । श्रर्थात् जो 5 प्रनेकान्त स्वरूप हैं उसे अर्थ कहते हैं । यहाँ 'अर्थ' यह लक्ष्य का निवेश है, उसी को अभिधेय अर्थात् कहा जाने वाला भी कहते हैं । 'श्रनेकान्त' यह लक्षण का कथन हैं। जिसके अथवा जिसमें पक शन्त अर्थात् धर्म सामान्य विशेष पर्याय और गुण पाये जाते हैं उसे श्रनेकान्त कहते हैं । तात्पर्य यह कि सामान्यादि अनेक धर्म घाले ३० पदार्थ को अनेकान्त कहते हैं । 'घट घट' 'भौगी' इस प्रकार के अनुगत व्यवहार के विषयभूत सदृश परिणामात्मक 'घटत्व' 'गोल' प्रादि धनुगत स्वरूप को सामान्य कहते हैं। वह 'घटत्व' स्थूल कम्बुग्रीवादि स्वरूप तथा गोत्व' साना प्रावि स्वरूप ही हैं। अतएव घटत्वादि सामान्य घटादि व्यक्तियों से न सर्वथा भिन्न है, व नित्य है 15 और न एक तथा अनेकों में रहने वाला है। यदि वैसा माना जाय ती अनेकों दुषण आते हैं, जिन्हें दिग्नाग ने निम्न कारिका के द्वारा प्रदर्शित किया है :— १ परस्पर में अपेक्षा रखने वाले पदों के निरपेक्ष समूह को वाक्य कहते हैं। जैसे- 'गाय का लायो' यहां 'गाय को' और 'लाली' में दोनों पद एक-दूसरे की अपेक्षा रखते हैं तभी वे विवक्षित पर्व का बोध कराने में समर्थ है तथा इस अर्थ के बोध में अन्य वाक्यान्तर की अपेक्षा नहीं होती इसलिए उक्त दोनों पदों का समूह निरपेक्ष भी है।

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