Book Title: Nyayadipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 332
________________ तीसरा प्रकाश २०७ होता हमा. शकट के उपप को जनाता है। (५) कोई उत्तरपर है, जैसे-एक मुहूर्त के पहले भरणिका उदय हो चुका; क्योंकि इस समय कृतिका का उरय अन्यथा हो नहीं सकता' यहाँ 'हरिराका का अस्य उत्तरवर हेतु है। कारण, कृत्तिका का उदय भरगि के उत्प के बार होता है और इसलिए वह उसका उत्सरबर होता हुमा उसको 5 जनाता है। (६) कोई सहा , माग बितौर मी रूपवान् होना चाहिए, क्योंकि रसवान् अन्यचा हो नहीं सकता महाँ 'रस' सहचर हेतु है। कारण, रस नियम से रूप का सवारी है.-साप में रहने वाला है और इसलिए वह उसके प्रभाव में नहीं होता हुआ उसका शापन कराता है। 10 ____ इन उदाहरणों में सवावरूप हो प्राण्याविक साथ्य को सिद्ध करने वाले धूमादिक साधन सद्भावरूप ही हैं। इसलिए ये सब विधिसाधक विधिरूप हेतु है। इन्हीं को अविरुद्धोपलग्धि कहते हैं। इस प्रकार विधिरूप हेतु के पहले भेद विषिसाधक का जवाहरणों द्वारा निरूपण किया । 15 दूसरा भेद निषेषसापक नामका है। विरुद्धोपलषि भी उसी का दूसरा नाम है। उसफा ग्वाहरण इस प्रकार है-'इस जीप के मिष्यात्व नहीं है, क्योंकि प्रास्तिकता अन्यथा हो नहीं सकती। यहाँ 'मास्तिकता' निषेषसाधक हेत है, क्योंकि प्रास्तिकता सर्वज्ञ वीतराग केारा प्रतिपादित तस्वार्थों के प्रशानरूप है। 20 वह प्रदान मियाव वाले (मिश्यावृष्टि) जीव के नहीं हो सकता, मानिए मह मिमित जोग में मिभ्यय के मभाव को सिद्ध करता है। अथवा, इस हेतु का दूसरा उदाहरण पह है-'वस्तु में सर्वचा एकान्त नहीं है, क्योंकि ममेकान्तास्मता अन्यथा हो नहीं सकती यहाँ 'मनेकान्तारमकता' निषेषसावक हेतु है। कारण, 25

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