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न्याय-दीपिका
नित्यत्व से विपरीत प्रनित्यत्व के साथ रहता है और सपा प्रकाशादि में नहीं रहता । अतः विरुवा है !
३. जो हेतु व्यभिचार सहित (व्यभिचारी) हो - साध्य के प्रभाव में भी रहता हो वह अनैकान्तिक हेत्वाभास है । जैसे—' प्रनित्य 5 है, क्योंकि वह प्रमेय है यहाँ 'प्रमेयत्व' -- प्रमेयपना हेतु अपने साध्यअनित्यत्व का व्यभिचारी है। कारण, आकाशादिक विपक्ष में नित्यत्व के साथ भी वह रहता है। अतः विपक्ष से व्यावृत्ति न होने से अनैकान्तिक हेत्वाभास है ।
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४. जिस हेतुका विषय - साध्य प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित हो वह 10 कालात्ययापदिष्टहेत्वाभास है । जैसे ठण्डी है, क्योंकि वह पदश्यं है' यहाँ 'पदार्थत्व' हेतु अपने विषय 'ठण्डापन' में, जो कि अग्नि की गर्मी को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष से बाधित है, प्रवृत्त है। प्रतः श्रबाधित विषयता न होने के कारण 'पदार्थत्व' हेतु कालात्ययापदिष्ट है ।
५. विरोधी साधन जिसका मौजूद हो वह हेतु प्रकरणसम अथवा सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास है। जैसे- 'शब्द अनित्य है, क्योंकि वह नित्यधर्मरहित है' यहाँ 'नित्यधर्मरहितत्व' हेतु का प्रतिपक्षी साधन मौजूद है। वह प्रतिपक्षी साधन कौन है ? शब्द नित्य है, क्योंकि
यह अनित्य के धर्मो से रहित है' इस प्रकार नित्यता का साधन करना, ( उसका प्रतिपक्षी साधन है । अतः प्रसत्प्रतिपक्षता के न होने से नित्यधर्मरहितत्व' हेतु प्रकरणसम हेत्वाभास है ।
इस कारण पाँचरूपता हेतु का लक्षण है । उनमें से किसी एक
के न होने पर हेतुके हेत्वाभास होने का प्रसङ्ग आयेगा, यह ठीक
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ही कहा गया है। क्योंकि जो 'हेतु के लक्षण से रहित हों और हंतु के
5 समान प्रतीत होते हों वे हेत्वाभास हैं। पांच रूपों में से किसी एक के