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तीसरा प्रकाश
का विचार न करके दूसरे ( बौखादिक ) अन्य प्रकार भो हेतु का लक्षण कहते हैं। उनमें बौद्ध पक्षधर्मस्व प्रादिक तीन लक्षणबाले हेतु से अनुमान को उत्पत्ति णिस करते हैं। वह इस प्रकार से है—पक्ष-धर्मत्व, सपक्ष-सत्त्व और विपक्ष-व्यावृति ये तीन हेतु के रूप (लक्षण} हैं। उनमें साध्यधर्म से विशिष्ट धमों को पा कहते 5 हैं । जैसे अग्नि के अनुमान करने में पर्वत पक्ष होता है । उस पल में व्याप्त होकर हेतुफा रहना पक्षधमत्व है। अर्थात् - हेतु का पहला रूप यह है कि उसे पत्र में रहना चाहिये । साय के समान धर्मवाले धर्मों को सपा कहते हैं। जैसे अग्नि के अनुमान करने में ही महानस ( रसोई का घर ) सपक्ष होता है । उस सपक्ष में सब 10 जगह अषका एक जगह हेतु का रहना सपक्ष-सत्त्व है। यह हेतु का सरा स्प है। साध्य से विरोधी धर्म वाले धर्मो को विपक्ष कहते हैं। जैसे अग्नि के अनुमान करने में ही तालाव दिपक्ष है। उन सभी विपक्षों से हेतु का व्यावृत्त होमा अर्थात् उनमें नहीं रहता विपक्षप्यावृत्ति है। यह हेतु का तीसरा रूप है। ये तीनों कप मिल कर 15 हेतु का लक्षण है। यदि इनमें से कोई एक भी न हो तो वह हेत्वाभास है-प्रसम्यग् हेतु है।
उनका यह वर्णन सङ्गत नहीं है। क्योंकि पक्ष-धर्मस्व के बिना भी कृसिकोडयाविक हेतु शकटोवयारि साध्य के शापक देने जाते हैं। यह इस प्रकार से 'शकट नक्षत्र का एक मुहूर्स के बाद उदय होगा, 20 क्योंकि इस समय कृतिका नक्षत्र का उदय हो रहा है।' इस अनुमान में 'शकट नक्षत्र' षों (पक्ष ) है, एक मूहर्स के बाव उदय' साप्य है मोर कसिका नक्षत्र का उपप' हेतु है। किन्तु 'कृतिका नक्षत्र का उदय' कप हेतु पलभूत 'कट' नक्षत्र में नहीं रहता, इसलिए वह पक्षधर्म नहीं है । अर्थात्-'कृत्तिका नक्षत्र का स्वप' रूप हेतु पक्षपर्म से 25