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न्याय-दीपिका
नौने' भी दो पर पदों को माना है गर उनी पस. यु. मान्यतासे भिन्न है । ऊपरकी मान्यतामें तो हेतु और दृष्टान्त थे दो अवयव हैं और जैन विद्वानों की मान्यतामें प्रतिज्ञा और हेतु ये दो अवयव है । जैन तार्किकोंने प्रतिज्ञाका समर्थन प्रौर दृष्टान्तका' निराक ग किया है। तीन अवयवोंकी मान्यता सांस्यों (माटर का. ५) और बौद्धोंके अलावा मीमांसकों (प्रकरण पु. ८१-८५) की भी है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि लघु अनन्तवीर्य (प्रमेयर० ३-३६) और उनके अनुमा हेमचन्द्र (प्रमाणगी. २-१-८) मोमांसदोंकी चार अवयव मान्पनाका भी उल्लेख करते है यदि इनका उल्लेत चीक है ता कहना होगा कि चार अवयनोंको मानने वाले भी कोई मीमांसद रहे हैं। इस तरह हम देखते हैं कि दशावयव और पञ्चावयवको मान्यता नैयायिकों की है । चार और तीन अवायोंकी मीमांसकों, तीन अवयवोंकी सांस्मों, तीन, दो और एक अवयवोंकी चौद्धों और दो अवयवों की मान्यता नोंकी है । वादिदेवपूरिने धर्म कोसिकी तरह विद्वानके लिए अनेने हेतुका भी प्रयोग बनलाया है । पर अन्य सभी दिगम्बर और श्वेताम्बर विद्वानोंने पनि मानगोग के कमने कम दो अजयत्र अवश्य स्वीकृत किये हैं। प्रतिपाकिचन गेघर तो तीन, चार और पविभी अन्नयन माने है। प्रा. धर्मभूषणने पूर्व परम्परानुसार वादकमानी अपेक्षा दो और वीतरागकथाकी प्रोपेक्षा अधिक अवयवों के भी प्रयोगका समर्थन किया हैं।
१ "एसवय मेवानुमानांग नोदाहरणम् ।"--परोक्षामु० ३-३७ । २ देखो, परीक्षामु० ३-३४ । ३ देखो, परोक्षामु० -१८-४३ । ४ नियुक्तिकार भद्रबाहुने (दशः नि० गा० १३७) भी वशावयौंका कथन किया है पर वे नैयायिकोंसे भिन्न हैं। ५ देखा, स्वाहावरत्नाकर पृ. ५४८