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पहला प्रकाश
हैं इसलिए वे उनके असाधारण धर्म कहे जाते हैं । वैसे दण्डादि पुरुष में मिले हुए नहीं हैं—उससे पृथक हैं और इसलिए वे पुरुष के असाधारण धर्म नहीं हैं । इस प्रकार सक्षण रूप लक्ष्य के एक देश अनात्मभूत दण्डादि लक्षण में प्रसाधारण धर्म के न रहने से लक्षण (असाधारण धर्म) प्रव्याप्त है।
5 ___इतना ही नहीं, इस लक्षण में प्रतिव्याप्ति दोष भी आता है। शावलेयत्वादि रूप प्रयाप्त नाम का लक्षणाभास भो असाधारणधर्म है। इसका खुलासा निम्न प्रकार है :
मिथ्या अर्थात्-सदोष लक्षण को लक्षणाभास कहले हैं। उसके सीन भेद हैं :-१ अव्याप्त, २ अलियास प्रौर ३ मम्मा!ि सभा के 10 एक वेश में लक्षण के रहने को प्रयाप्त लक्षणाभास कहते हैं । जैसे गायका शावलेयत्व । शावलेयत्व सब गायों में नहीं पाया जाता वह मुछ ही गायों का धर्म है, इसलिए अच्याप्त है । लक्ष्य और प्रलक्ष्य में लक्षण के रहने को प्रतिय्याप्त लक्षणाभास कहते हैं । जैसे पाय का ही पशुत्व ( पशुपना लक्षण करना। यह 'पशुत्व गायों के 15 सिवाय प्रश्चावि पाश्नों में भी पाया जाता है इसलिए 'पशुत्व' प्रतिव्याप्त है। जिसकी लक्ष्य में बत्ति बाधित हो अर्थात जो लक्ष्य में बिलकुल ही न रहे वह असम्भवि त्वक्षणाभास है। जैसे मनुष्य का लक्षण सोंग । सौंग किसी भी मनुष्य में नहीं पाया जाता। अतः वह असम्भवि लागाभास है। यहाँ लक्ष्य के एक देश 20 में रहने के कारण ‘शावलेयत्व' प्रच्याप्त है, फिर भी उसमें प्रसाधारणधमत्व रहता है-'शावलेयत्व' गाय के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं रहता- गाय में ही पाया जाता है। परन्तु वह लक्ष्यभूत समस्त गापों का घातक – अषादि से जुदा करनेवाला नहीं हैकुछ ही गायों को व्यावृत्त कराता है । इसलिए अलक्ष्मभूत प्रयाप्त 25 लक्षणाभास में असाधारणधर्म के रहने के कारण अतिव्याप्ति भी