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दूसरा प्रकाश
१५७ म्यायविनिश्चयविदरम' में इस प्रकार किया है कि "निर्मलप्रतिभासत्व ही स्पष्टस्य है और वह प्रत्येक विचारकके अनुभवमें प्राता है। इसलिये इसका विशेष व्याल्यान करना प्रावश्यक नहीं है"। अतः विशवप्रतिभासात्मक ज्ञानको जो प्रत्यक्ष कहा है वह बिल्कुल ठीक है। बोडोंके प्रत्यक्ष लक्षणका निराकरण
बोर कल्पना-पोड-निविकल्पक और प्रधान्त-भ्रान्तिरहित जानको प्रत्यक्ष' मानते हैं। उनका कहना है कि यहाँ प्रत्यक्ष लकाणमें खो वो पर दिये गये हैं। उनमें 'कल्पनापोढ पदसे सविकल्पकको लौर भान्त' परमे मियानातोली व्यामि को 10 गई है। फलितार्य यह हा कि जो समीचीन मिविकल्पक जाम है यह प्रत्यक्ष है। किन्तु उनका यह कथन बालचेष्टामात्र हैसयुक्तिक नहीं है। क्योंकि निर्विकल्पक संशयाविरूप समारोपका विरोधी ( निराकरण करनेवाला ) न होनेसे प्रमाण हो नहीं हो सकता है। कारण, निश्चयस्वरूप मानमें ही प्रमाणता व्यवस्थित 15 ( सिद्ध होती है। तब वह प्रत्यक्ष कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता है।
शा-निर्विकल्पक हो प्रत्यक्ष प्रमाण है, क्योंकि वह मर्मसे उत्पन्न होता है। परमार्थसत्-वास्तविक है और स्वलक्षणजन्य है। सविकल्पक नहीं, क्योंकि वह प्रपरमार्थभूत सामान्यको विषय करनेसे 20 अर्थजन्य नहीं है ? ___ समाधान नहीं; क्योंकि अयं प्रकाशकी तरह मानमें कारण नहीं हो सकता है । इसका खुलासा इस प्रकार है :
अन्वय { कारणके होनेपर कार्यका होना ) और व्यतिरेक (कारको प्रभावमें कार्यका न होमा ) से कार्यकारण भाष जामा 25