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प्रस्तावना
नहीं थे । प्रथम धर्मभपणता मीनिक और दिनाय नमभण अमरकात्तिके शिष्य थे । अतएव यह निश्चयपुवक कहा जा सकता है कि अभिनव धर्मभूमण देव रायप्रथमो समकालीन हैं । अर्थात अन्य कारका अन्तिमकाल ई० १४१८ होना चाहिये । यदि यह मान लिया जाय नो उनका जीवनकाल ई० १३५८ने १४१८ ई० गक समझना नाहिय । अभिनव धर्मभूषण जैसे प्रभावशाली विद्वान जैन साधुरे लिये ६० वर्ष की उग्र पाना कोई ज्यादा नहीं है। हमारी मम्भावना यह भी है कि ने दवाय द्वितीय (१४१६-१४४६ ३०) ओर उनक थेट पक के द्वारा भा प्रणुत रहे हैं। हो सकता है कि ये अन्य धर्मभयग हो, जा . इनना अवश्य है वि ने देबराय प्रमग ममत्रान्टिय निचिदम्पग ।
ग्रंथकारन न्यायदीपिका (०२१) में 'बालिशाः पादाक साथ सायाके सर्वदर्शनसंग्रहास एक पंक्ति उन यी । गागा गमबाप.ग. :: १३वीं शताब्दी वा उलगर्व माना जाता है । क का 25:.. का उनका एक दानपत्र मिला है जिमग व इसी गमयक विद्वानमा । न्यायदीपिकाकारका बालिशाः' परका प्रयोग उन मायण ममकरना होने की ओर संकेत करता है । साथ ही दाना विद्वान नजदीक ही नी. एक ही जगह --विजयनगरके हिनयान, भी थे ग़न्दिा पपू गम्भ है कि धर्मभूषण और गायण मम मागयिक ग । या १०-५. मग पीक होंगे । अतः न्यायदीपिकावे इस पसनी पुर्वान नि डाका १२८ से १३४० या १६५८१२१८ ममय ही गिल वान शिलालेख नं० २ अादि प्राप्त नहीं हो सका । अन्यथा वम निपत : न पहुँचते ।
प्रशस्तिसं०१० १४५में इनका समय ई० १४२६.१ १.५१ दिया :२ इसके लिये जैनसिद्धान्तभवन पारासे प्रकाशित प्रशस्ति सं० में न कराये गये वर्द्धमान मुनीन्द्र 'दशभक्त्यादिमहाशास्त्र' देखना चाहिये । ३ देखो, सर्वदर्शनसंग्रहको प्रस्तावना पृ० ३२ ।