Book Title: Nandanvan Kalpataru 2006 00 SrNo 16
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 19
________________ अनूदिताः श्रीशत्रुञ्जयताथचन्यवन्दन-स्तवन-स्ततयः अनु. - मुनिधुरन्धरविजयः (१) चैत्यवंदन otoxxx श्रीशत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे; भाव धरीने जे चढे, तेने भव पार ऊतारे ॥१॥ अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय; पूर्व नव्वाणु ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय ॥२॥ mrisolirolirohesoris सूरज कुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम; नाभिराय कुल मंडणो, जिनवर कुरुं प्रणाम ॥३॥ चैत्यवन्दनम् सिद्धभूमि शत्रुञ्जयो, दृष्टो दुर्गतिवारः । यो भावनाऽऽरोहते, तं भवजलोत्तार: ॥१॥ स्थानमनन्तसिद्धात्मनां, सकलतीर्थमहाराजः । नवनवतिपूर्वाण्यथा-ऽऽययौ ऋषभजिनराजः ॥२॥ सूर्यकुण्ड इह शोभनो, यक्षकपर्दयभिरामः । नाभिराजकुलमण्डनाय, जिनवर ! तेऽस्तु प्रणामः ॥३॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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