Book Title: Nandanvan Kalpataru 2006 00 SrNo 16
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीशारदावन्दनम्
.
डॉ. आचार्यरामकिशोरमिश्रः
.
यां भारती प्रथममत्र हि वेदवाणी, ब्राह्मी गिरां च हृदये मनसा स्मरामि । वन्दे वसन्ततिलकेन सरस्वती यां,
तां शारदां भगवतीं शिरसा नमामि ॥१॥ या वीणयाऽत्र कुरुते श्रुतिगायनं वै, वेदस्य पुस्तकमथ स्वकरे च धत्ते । यस्याः कृपा जडमतिं सुमतिं करोति,
तां शारदां वचनदां प्रणमामि देवीम् ॥२॥ ज्योतिष्मती त्वमसि चन्द्रमसोज्ज्वलाऽसि, वेदप्रियाऽसि विमलाङ्गिनि ! वेदमाता । त्वं जन्ममृत्युरहिताऽसि जरापहाऽसि,
त्वां देवि ! संस्कृतगिरा सततं नमामि ॥३॥
दत्ते समस्तजगते व्यवहारशक्तिं, लेखादिभाषणगिरं विदुषे ददासि । जीवाय या स्वलपितं प्रददाति वाण्या,
तां शारदां वचनदां प्रणमामि देवीम् ॥४॥
२५ For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114