Book Title: Nandanvan Kalpataru 2006 00 SrNo 16
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 64
________________ काव्यानुबादः प्रभो ! ऽहं प्रार्थये चैवम् गूर्जरमूलम् करो रक्षा विपदमांही, न एवी प्रार्थना मारी; विपदथी न डरुं को दी, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. मळो दुःख-तापथी शान्ति, न एवी प्रार्थना मारी; सहु दुःखो शकुं जीती, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. सहाये को' चडी आवो, न एवी प्रार्थना मारी; तूटो न आत्मबळ-दोरी, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. मने छल-हानिथी रक्षो, न एवी प्रार्थना मारी; डगुं न आत्मश्रद्धाथी, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. प्रभु तुं पार ऊतारे, न एवी प्रार्थना मारी; तरी जावा चहुं शक्ति, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. तुं ले शिरभार ऊपाडी, न एवी प्रार्थना मारी; उपाडी हुं शकुं रहेजे, प्रभु ए प्रार्थना मारी. सुखी दिने स्मरूं भावे, दु:खी अंधार रात्रिए; न शंका तुं-विशे आवे, प्रभु ! ए प्रार्थना मारी. (“प्रभु ! ए प्रार्थना मारी" AAJaase आश्रम भजनावलि) म ANYCla Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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