Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 07
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 13
________________ पत्रम् श्रीअनिल र. द्विवेदी ३०३, ऋषि - एपार्टमेन्ट २, आनन्दकोलोनी, जामनगरम्-३६१००८ आदरणीय-कीर्तित्रयीं प्रति - नन्दनवनकल्पतरुर्नाम अयनपत्रं सुतरां रोचते मे। अहं महाविद्यालये संस्कृताध्यापकरूपेण कार्यं करोमि । तत्र अपठितसंस्कृतं पाठ्यन्नहं विद्यार्थीनीनां पठनार्थं समर्पयामि इदमयनपत्रम् । प्राप्तेऽवसरे नन्दनवनकल्पतरुस्थस्य कस्यचन विषयस्य चर्चाऽपि क्रियते । अनेन प्रकारेण पत्रमिदमुपयोगि भवति । अयि दलदरविन्दस्यन्दमानं मरन्दं, तव किमपि लिहन्तो मञ्ज गुञ्जन्तु भृङ्गा । दिशि दिशि निरपेक्षस्तावकीनं विवृण्वन् , परिमलयमन्यो बान्धवो गन्धवाहः ।। छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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