Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 07
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 46
________________ हृदयोल्लासः मूलं - My heart leaps up कविः - William Wordsworth उड्डयते हृन्मम शक्रधनुषि नयनसरणिमुपयाते । ऋजुरोहितमिदमासीत् प्रागप्येवमेव मयि जाते ॥ मद्यौवनकालेऽप्येवं मद्वार्धक्येऽपि च भूयात् । मन्मरणेऽप्येवं मनुजस्य पिता शिशुरिति नियतत्वात् ॥ आशासेऽहं मत्का दिवसा विहितप्रकृतिश्रद्धाः । प्रोता मिथ एवं भूयासुः प्रीणितशिशुयुववृद्धाः ॥ व्याघ्रः मूलं - The Tiger chiat: - William Blake व्याघ्र! व्याघोचलसि लसन् नक्तं विपिने भूरि चन् केनाडमयेण रेण व्यधायि किमुत कटाक्षेण त्वत्क्तनोरतिभयबहुलं दैहिक्सामञ्जस्यमलं दूरे देशे नभसि च या ज्वलति शिखा त्वन्नयनीया १. अलं - पर्याप्तम् । Jain Education International ३१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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