Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 16
________________ बनाए घरौंदों को अपने ही पाँवों से रौंदते हुए निकल जाते हैं। तब न कोई बच्चा होता है, न ही बीबी, न माँ-बाप और न ही कोई ज़मीन-जायदाद रोक पाती है। ये तो सब अपने मन की कमजोरियों के परिणाम हैं । जब तक मन कमज़ोर है तब तक ये सब घरौंदों की तरह लुभाते हैं, पर जिस दिन मन उस किनारे की पुकार सुन लेता है तो तोड़ देता है उन घरौंदों को और निकल पड़ता है दूसरे किनारे की खोज पर। महावीर का मार्ग तो जीतने का, उस पुकार को सुनने का मार्ग है। यह मार्ग होंठों को मौन रखने का और कानों को खोलकर सुनने का मार्ग है । महावीर ने शब्द दिया : ‘श्रावक' । श्रावक वह जो उस किनारे की पुकार को सुनता है। महावीर ने एक शब्द और दिया : ‘श्रमण' । श्रावक पहली सीढ़ी है और श्रमण दूसरी सीढ़ी है। जो सुनता है वह श्रावक और जो सुने हुए पर श्रम करता है, उसे साधता है और सिद्धि के मार्ग पर बढ़ जाता है वह श्रमण । केवल श्रावक होने से काम नहीं चलेगा। तब तक कोई भी व्यक्ति पक्का श्रमण नहीं बन पाता जब तक वह पक्का श्रावक नहीं बन जाता है। श्रमण तो बन जाएँगे, पर जब तक सही मार्ग सना और समझा ही नहीं तो श्रमण बन जाने से क्या होगा ? तब बीच रास्तों में भटक जाओगे, चौराहों पर जाकर खो जाओगे। आज अगर कुछ श्रमण कच्चे निकल जाते हैं तो इसका मूल कारण यही है कि वे पहले अच्छे श्रावक न बन पाए । वे मार्ग को ठीक ढंग से समझ न पाए। बिना सोचे-समझे कोई भी आदमी चलेगा तो परिणाम क्या होगा? आगे जाकर लौट आएगा। क्रिया महत्त्वपूर्ण नहीं है, क्रिया से भी महत्त्वपूर्ण है उसका ज्ञान । तपस्या महत्त्वपूर्ण है, पर उससे भी ज़रूरी है जो तपस्या की जा रही है उसका ज्ञान ! नहीं तो व्यक्ति तपस्या तो करेगा, पर साथ ही क्रोध भी करता जाएगा। तपस्वी क्रोध करता हुआ नज़र आता है, वज़ह ? वजह यही कि वह तपस्या के उद्देश्य को नहीं समझ पाता है, परिणाम-स्वरूप तपस्या कषाय के बंधन का निमित्त बन जाती है। पहले श्रावक बन जाएँ तो समझ में आ सकता है कि हमारी तपस्या का उद्देश्य ही कर्मों की निर्जरा करना है, कषायों का निरोध करना है। तब हमें भान रहेगा कि क्रोध, मान, माया और लोभ की कषाय रूपी चांडाल चौकड़ी को ख़तम करने के लिए हम तपस्या कर रहे हैं। पूर्व में बँधे प्रगाढ़ कर्मों को क्षय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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