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वाला भी, हमारे जीवन का माँझी बन जाता है। जैसे कि राम को नौका से नदी पार करवाने के लिए केवट के रूप में माँझी मिल गया। ताज्जुब की बात तो यह है कि राम नदिया पार करने के बाद अपनी ओर से केवट को कुछ मूल्य चुकाना चाहते हैं। यहीं हम ग़लती कर जाते हैं क्योंकि गुरु जो हमें पार लगाते हैं उन्हें भी हम भौतिक पदार्थ दे-देकर प्रसन्न करना चाहते हैं। ये तो माँझी ही केवट जैसा समझदार होता है जो राम को भी इस बात का बोध करा देता है कि जो इन्सान इन्सान को पार लगाता है उसे भौतिक पदार्थों से नहीं तौला जा सकता, उसको तौलने के लिए आध्यात्मिक भाव-भूमिका चाहिए ।
राम ने जब मूल्य चुकाना चाहा तो केवट ने यह कहकर लौटा दिया कि - प्रभु जी तुम भी पार लगाने वाले हो और हम भी पार लगाने वाले हैं। आज आपका काम अटक गया तो हमने आपका काम निकाल दिया, कल जब हमारा काम अटक जाए तो आप हमारा काम निकाल देना । राम समझ न पाए कि यह माँझी कहना क्या चाहता है। केवट मुस्कुराकर, आँखों में श्रद्धा के आँसू लाकर कहने लगा - जब एक नाई दूसरे नाई का और एक धोबी दूसरे धोबी का काम करता है तो पैसे नहीं लेता है। ऐसे ही रामजी ! तुम भी माँझी हम भी माँझी। माँझी ने माँझी का काम किया तो अहसान नहीं किया। आज तुम्हारा काम पड़ा हमने तुम्हें पार लगा दिया, कल जब हम संसार रूपी नदिया को पार लगाने आएँ तो तुम भी हमारे सामने चले आना, हमारी डूबती नैया को भव से पार लगा देना । आज मैंने अपना दायित्व निभाया है, कल जब मैं पुकारूँ तब तुम अपना दायित्व निभाना । मेरी करुण पुकार अनसुनी न कर देना।
यह जो प्रभु को पुकारने की तमन्ना है यही हमें पार ले जाती है। उस पार से हमें न्यौता और मीठी पुकार आ रही है। जो सुनेगा वही किसी नौका की व्यवस्था करेगा। जो नहीं सुनेगा वह इसी किनारे पर चहलकदमी करते हुए अपने घरौंदे में वापस लौट जाएगा। बच्चे घरौंदे बनाते और तोड़ते हैं। माँ की पुकार आती है और बच्चे घरौंदे तोड़-तुड़ाकर निकल जाते हैं। जब तक हमें उस किनारे की पुकार नहीं आती है तब तक हम उन घरौंदों से मोह रखते हैं। अन्य किसी की पुकार पर घरौंदे नहीं तोड़ते लेकिन खुद की माँ, खुद के खुदा की ओर से जब पुकार आ जाती है तो इन घरौंदों से मोह नहीं रहता और अपने हाथों से
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