________________ जावालका श्रीसंघ देव गुरु धर्मप्रेमी एवं शासनसम्राट गुरुदेवश्रीके प्रति अति श्रद्धावान होने के कारण तार और पत्रद्वारा अमदावाद स्थित पृ० गुरुदेवको हमारे दोनोंका चातुर्मासके लिये विनंति की ओर आज्ञा मांगी। जावाल श्रीसंघका अत्यन्त आग्रह होनेके कारण गुरुआज्ञानुसार हम दोनोंका चातुर्मास वहाँ ही हुआ। इस चातुर्मासमें श्रीसंघके आगेवानोने शासनप्रभावनाके अनेक शुभ कार्य उत्साहपूर्वक किये। यह वि० सं० 2003 का उपयुक्त चातुर्मासमें दीर्घकालसे मनमें अभिलषित जो इच्छा थी उसको शास्त्राध्ययनमें सदा उद्यत / श्रीमान् ताराचंदजी मोतीजीकी सत्प्रेरणासे मीली और यह हिन्दी विक्रमचरित्र लिखना आरंभ कीया, वहाँ स्थिरता कालमें करीब तीन सर्गका अनुवाद कीया, चातुर्मास खतम होनेसे दीयाणा, लोटाना, नादीया, बामणवाडा आदि मारवाडकी लघु पंचतीर्थीकी यात्राके लिये श्रीसंघकी अग्रेसर व्यक्तियोंकी तरफसे छोटाशा संघरूपमें प्रयाण कीया उस छोटा सा संघमें ताराचंद मोतीजी, भभूतमल भगवानजी, पुनमचंद मोतीजी आदि सपरिवार साथ थे, उनोंने सब तीर्थस्थलोमें उल्लास भावसे समयसर द्रव्यत्यय अन्छा कीया था / उपर्युक्त संघ निर्विन बामणवाडा पहुंचा। जावालका श्रीसंघ जावाल वापिस लोटा और हम दोनों मुनियोने पिंडवाडाके प्रति विहार किया। ___क्रमशः पीडवाडा, अजारी, नाणा, बेडा, श्रीराता महावीरजीवीजापुर होकर सीवगंज आये, और मौन एकादशी कर वहासे क्रमशः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org