Book Title: Kuvalayamala Katha Sankshep
Author(s): Udyotansuri, Ratnaprabhvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 170
________________ -६२४५] फुषलयमाला 1णिम्गहत्थाण-वाइणो णइयाइय-दरिसण-परा । कहिंचि जीवाजीवादि-पयस्थाणुगय-दन्बढ़िय-पज्जाय-णय-णिरूवणा-विभागो-1 वालद्ध-णियाणियाणेयंतवायं परूवेति । कत्थइ पुहह-जल-जलणाणिलागास-संजोय-विसेसुप्पण्ण-चेयण्ण मजग-मदं पिव भत्तणो णत्थि-वाय-परा लोगायतिग त्ति। ६२४५) इमाई च दट्टण कुमारेण चिंतियं । 'महो, विजया महापुरी जीए दरिसणाई सव्वाई पि वक्खाणीयति । मह णिउणा उवज्झाया। ता कि करेमि किंचि से चालगं, अहवा ण करेमि, कजं पुणो विहढइ । ता कारेयव्वं मए कज' 6ति चिंतिऊण अण्णत्व चलिओ राय-तणओ । अवि य । तत्थ वि के वि णिमित्त अवरे मंत जोगं च अंजण अण्णे । कुहयं धाउब्वाय जक्खिणि-सिद्धिं तह य खत्तं च । जाणंति जोग-मालं तत्थं मिच्छं च जंत-मालं च । गारुळ-जोइस-सुमिण रस-बंध-रसायणं चेय॥ छंदवित्ति-णिरुतं पत्तच्छेज तहेंदयाल च । दंत-कय-लेप्प-कम्मं चित्तं तह कणय-कम्मं च ॥ विसगर-तंतं वालय तह भूय-तंत-कम्मं च । एयाणि य अण्णाणि य सयाई सस्थाण सुवति ॥ तमो कुमारेण चिंतियं । 'अहो साहु साहु, उवज्झाया गं बाहत्तरि-कला-कुसला चउसटि-विण्णाणब्भतरा स एए' त्ति 12चिंतयतो वलिओ अण्णं दिसं राय-तणओ । तस्थ य दिट्ठा अणेए दालि-वहा केवल-वेय-पाढ-मूल-बुद्धि-विस्थरा चट्टा । से उण केरिसा । अवि य। कर-घाय-कुडिल-केसा णिय-चलण-प्पहार-पिहुलंगा। उण्णय-भुय-सिहराला पर-पिंड-परूढ-बहुमंसा ॥ 15 धम्मत्थ-काम-रहिया बंधव-धण-मित्त-वजिया दूरं । केइत्य जोवणत्या बाल च्चिय पवसिया के वि ॥ 16 पर-जुवइ-दसण-मणा सुहयत्तण-रूव-गम्विया दूरं । उत्ताण-वयण-णयणा इट्टाणुग्घट-मट्ठोरू॥ ते य तारिसे दालि-बट्ट-छत्ते दट्टण चिंतियं । 'अहो, एत्य इमे पर-तत्ति-तग्गय-मणा, ता इमाणं वयणामो जाणीहामि 18 कुवलयमालाए लंबियस्स पाययस्स पउत्तिं । अल्लीणो कुमारो । जंपिओ पयत्तो। 'रे रे आरोह, भण रे जाव ण पम्हुसइ ।18 जनार्दन, प्रच्छहुं कस्य तुम्मे कल्ल जिमियल्लया। तेण भणियं 'साहिउं जे ते तओ तस्स वलक्खएलयई किराडहं तणए जिमियालया। तेण भणियं 'किं सा विसेस-महिला वलक्खइएल्लिय' । तेण भणियं 'महहा, सा य भडारिय संपूर्णशस्खलक्खण गायत्रि यहसिय' । अण्ण भणियं 'वर्णिण कीदृशं तत्र भोजनं । भण्गेण मणियं 'चाई भट्टो, मम भोजन 21 स्पृष्ट, तक्षको है, न वासुकि' । अण्णेण भणियं 'कत्तु घडति तउ, हद्धय उल्लाव, भोजन स्पृष्ट स्वनाम सिंघसि' । भण्ोण भणियं 'अरे रे वड्डो महामूर्ख, ये पाटलिपुत्र-महानगरावास्तव्ये ते कुस्था समासोक्ति बुज्झति । भण्णेण भणियं 'अस्मादपि इस अमूखंतरी'। अण्णेण भणियं 'काई कज' । तेण भणियं 'भनिपुण-निपुणाथोक्ति-प्रचुर। तेण भणिय 'मर काई मां मुक्त, अम्वोपि विदग्धः संति' । अण्णेण भणिय 'भट्टो, सत्यं स्वं विदग्धः, किं पुणु भोजने स्पृष्ट माम कथित । तेण मणिय 'अरे, महामूर्खः वासुकेर्वदन-सहस्रं कथयति'। कुमारेण य चिंतियं । 'अहो, असंबद्धक्खरालावत्तणं बाल-देसियाणं । महवा को 1) J -वातिणो, P नइवाइय, JP 'जीवाइ, J 'पदत्थाणुगत, P "णुगतदव्बढि 2) P 'निच्चाणय, 'णेअंतवातं, P°वायं रूवेंति,J 'जलणणिला', विसेसुप्पण्णुचेतण्णु, P मयं for मदं. 3) चात, परलोयगायगित्ति. 4) P.trans. दरिसणाई after पि, J वक्खाणियंति. 5)Jinter. करेमि & किंचि. 7) J जोर्थ,P जक्खणः, I तहेच, P खनं. 8) जोधमालं, मित्थं च जेत्तमालं, P गारुडमाइसमुमिणं, जोतिस- 9) छंदविति, तहेय इंदा तहेदयालं, Jom. the line दंतकय eto. 10) भूत-Jएताणि,J सताई. 11) Pउवज्जाया, P बाहुत्तरिकाला, विण्णाणरु (भ?) त्तरा य एपंति. 12)P चलिओ for वलिओ, P दिसंतराय, Jom. य, अणेये दालिविट्टा, P अणेय, P वेयपाय: Pom.बुद्धि, ते पुण. 14) अन्नय for उण्णय, Pबहु मासा. 15) जण for धण. 16)P सुवत्तणरूव. 17) P तारिस, पदालिवि, inter एत्थ& इमे, P जाणिहामि. 18) पातअस्स, जंपिउं P जंपियउं, P जाव न पमुहुसह. 19) पुच्छह कत्थ, भगिओ, Pom. ते, वलक्खइएल्लयह, I om. किराडहं. 20) JP विसे for विसेस. The passage अहहा to कथयति (lines 20-26), is found only in 33; it is given in the text mostly as it is with the restoration of य-श्वति. 21) भट्टो or रुट्टो. 22) हच्चय or हद्धयः 23) ते is added below the line. 24) मरका or नरकाई. Instead of the passage est to fa found in J and adopted in the the text above, p has the following passage which is reproduced here with minor corrections : 'अहह रुंह मुंड-सूनिहलकल्लोल-माल भडारिया दुत्तरिय सरस्वतिजासिया' । तेण भणियं 'अरे, दुचारिणी सा' 'अहह इमं कुअक्षर-नवक्खप्फ मात. भडारिया गंगादेवि जइसिया भस्मीकरेजा'। तेण मणियं 'अरे त्वं मुंज्यमान्या सा सस्य हेहिं दीर्घ-धवलेहिं लोचनेहिं निरकृति' । तेण भणियं हुं हुं मसल्य-चालि-निरीकृति काई वररुद्दो सति ब्रह्मपुवर्णढिब मि । तहिं दीर्घ-धवल-लोचनेहिं ग्रसतीव पिबतीव लुपतीव विलुपतीव अक्षिएहिं निरिक्ष्यति । तेण भणियं 'अरे, तया मणिय सा दुश्वारिणी न होति । अथ च त्वं सरपृहं निरीक्ष्यति । परस्पर विरुद्धं एहु वचनु' । तेण भणियं 'अरे न-याणाहि कामशास मदीयगुरुपदिछ । यदि भवति मात सीतसती व दमयंती अप्सर तदपि क्षुमति'. In the following conversational passage the readings are exhaustively noted and the passage is faithfuly reproduced as in one or the other Ms. 26) Pom. य, चिंति, 'क्खरालायत्तणं बालदेसिआणं |, 'लावत्तणं मुरुक्खबडुयाणं ।। Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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