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उज्जोयणसूरिविरइया
वंदामि सम्य-सिद्धे पंचाणुत्तर निवासियो ने व छोयंतिए व देवे दद्द सम्ये हुर्रिदेव ॥ आहारय- देह - घरे उवसामग-सेढि संठिए वंदे । सम्मद्दिद्विप्पभुई सब्वे गुणठाणए वंदे ॥ संत कुंथू य अरो एयाणं आसि णव महाणिहिओ । चोइस रयणाइँ पुणो छण्णउई गाम-कोडीओ बल-केसवाण जुयले पणमह अण्णे य भब्व-ठाणेसु । सब्वे वि वंदणिजे पवयण-सारे पणिवयामि ॥
ओ मे भवग्ग-वग्गू सुमणे सोमणस होंतु महु-महुरा । किलिकिलिय- घडी चक्का हिलिहिलि-देवीमो सम्वाओ ॥
इस पवयणस्स सारं मंगलमेवं च पूयं एत्थ एवं जो पउइ णरो सम्मट्टिी व गोसग्गे ॥
वद्दियसं तस्स भवे कलाण-परंपरा सुविहियस्स । जं जं सुई पसत्थं मंगलं होइ तं तं च ॥
६ ४३२ ) इस एस गणिती तेरस कळणाएँ जइ सहस्साइ अण्णो वि को वि गणेही सो नाही जिच्या संचा
इस एस समय बिय हिरिदेवीए वरप्पसाएण कणो होठ पसण्णा इन्डिय-फळया व संधस्स ॥
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॥ इति कुवलयमाला नाम संकीर्ण-कथा परिसमाप्ता ॥
॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥
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महाणिवहो, छण्णउद.
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3) घडिचका. 9) Jom two verses एय दस गणिती et P for एस. The colophon of P stands thus : समाप्तेयं कुवलयमाला नाम कथा ॥ छ ॥ ग्रंथ संख्या सहस्र ॥ १००००१ कृति श्रीश्वेतपटनाथमुनेदाक्षिण्यलांछनस्य उद्योतनसूरे ॥ छ ॥ ॥ छ ॥ The Ms. 3 adds something more after महाभीः, ॥ छ ॥ संवत् ११३९ फाल्गु वदि १ रवि दिने लिखितमिदं पुस्तकमिति ॥
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