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________________ २८४ 1 8 B 9 उज्जोयणसूरिविरइया वंदामि सम्य-सिद्धे पंचाणुत्तर निवासियो ने व छोयंतिए व देवे दद्द सम्ये हुर्रिदेव ॥ आहारय- देह - घरे उवसामग-सेढि संठिए वंदे । सम्मद्दिद्विप्पभुई सब्वे गुणठाणए वंदे ॥ संत कुंथू य अरो एयाणं आसि णव महाणिहिओ । चोइस रयणाइँ पुणो छण्णउई गाम-कोडीओ बल-केसवाण जुयले पणमह अण्णे य भब्व-ठाणेसु । सब्वे वि वंदणिजे पवयण-सारे पणिवयामि ॥ ओ मे भवग्ग-वग्गू सुमणे सोमणस होंतु महु-महुरा । किलिकिलिय- घडी चक्का हिलिहिलि-देवीमो सम्वाओ ॥ इस पवयणस्स सारं मंगलमेवं च पूयं एत्थ एवं जो पउइ णरो सम्मट्टिी व गोसग्गे ॥ वद्दियसं तस्स भवे कलाण-परंपरा सुविहियस्स । जं जं सुई पसत्थं मंगलं होइ तं तं च ॥ ६ ४३२ ) इस एस गणिती तेरस कळणाएँ जइ सहस्साइ अण्णो वि को वि गणेही सो नाही जिच्या संचा इस एस समय बिय हिरिदेवीए वरप्पसाएण कणो होठ पसण्णा इन्डिय-फळया व संधस्स ॥ 卐 ॥ इति कुवलयमाला नाम संकीर्ण-कथा परिसमाप्ता ॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥ Jain Education International [६४३१ For Private & Personal Use Only 1 महाणिवहो, छण्णउद. 8) 3) घडिचका. 9) Jom two verses एय दस गणिती et P for एस. The colophon of P stands thus : समाप्तेयं कुवलयमाला नाम कथा ॥ छ ॥ ग्रंथ संख्या सहस्र ॥ १००००१ कृति श्रीश्वेतपटनाथमुनेदाक्षिण्यलांछनस्य उद्योतनसूरे ॥ छ ॥ ॥ छ ॥ The Ms. 3 adds something more after महाभीः, ॥ छ ॥ संवत् ११३९ फाल्गु वदि १ रवि दिने लिखितमिदं पुस्तकमिति ॥ 3 www.jainelibrary.org.
SR No.001869
Book TitleKuvalayamala Katha Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotansuri, Ratnaprabhvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1959
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size14 MB
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