Book Title: Kuvalayamala Katha Sankshep
Author(s): Udyotansuri, Ratnaprabhvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
- ४२६]
कुवलयमाला
1
६ ४२४) साहूण नमोकारं करेमि तिविद्देण करण- जोएण जेण भव-लक्ख-दर्द खगेण पावं विनामि ॥ पणमह ति-गुति-गुते विलुत्त-मिच्छत-पत्त-सम्मत्ते । कम्म- करवत्त- पत्ते उत्तम-सते पणिवयामि ॥ पंचसुसमिसु एति-सह-पडिपेलनि गुरु-महे । चङ- विकहा- यम्मुके मव-मोद-विवाद धीरे ॥ पणमामि सुद्ध-लेसे कसाय-परिवत्रिए जियान दिए जीव-काय रक्खण-परे व पारंपरं पत्ते ।। च-सण्णा-विप्यजडे वगुणे संतु उसम-सते पणमो अपमचे सम्य-कालं पि ॥ परिस-बल-परिमले उयसम्म सहे पम्मि मोक्खस्स समणे यगे सुमने समने व-पाव-पंकस्स सेवए साहू णमोकारो जइ लभ मरण-देस-कालम्मि साहूण णमोकारो कीरंतो अवरेज जं पावं साहूण णमोकारो कीरतो भावमेत-संसुदो तन्हा करेमि सम्वायरेण साहूण वं णमोकार
1
विरुद्दा- पमाव रहिए सहिए वंदामि समणे सबए सुहए समए व सच्चर साहु मह वंदे ॥ चिंतामणि पद्धं किं मग्गसि काय-मनियाई ॥ पावाण करथ हियए पिसह एसो अण्णा ॥ सचल-मुद्दाणं मूलं मोक्स्सस्स व कारण होइ ॥ वरिऊन भव-समुई मोक्खय- दीवं च पावेमि ॥
४१५) ए जयम्मिसार पुरिसा पंचैव ताण जोकारो प्यान उचरि अण्णो को वा भरिहो पणामस्स ॥ सेयाण परं सेयं मंगलाणं च परम-मंगलं । पुण्णाण परं पुण्णं फलं फलाणं च जाणेजा ॥
8
9
12
1
एवं होइ पवितं वरपर सास सहा परमं एवं भारा किंवा हि थ कज्जेहिं चारितं पण वह णाणं णो जस्स परिणयं किंचि । पंच- णमोकार - फलं अवस्स देवत्तणं तस्स ॥ एवं दुह-सय- जलयर-तरंग-रंगत भासुरावत्ते । संसार-समुहम्मि कयाइ रयणं व णो पत्तं ॥ एवं अब्दुलं एवं अप्पत्त- पत्तयं मज्झ । एयं परम-भयहरं चोजं कोडुं परं सारं ॥ विसराहा विकु उम्मूमि गिरी विमूलामो गम्म गयणवलेणं दुलो एसो णमोकारो ॥ जो
होज सीमो परिवह-दू बहेन सुर-सरिया ण व नाम ण देख इमो मोल-फर्क जिन-नमो ॥ पूर्ण मलद्वउच्च संसार-महोयहिं भमंतेहिं । जिण-साहु-णमोकारो तेणज्ज वि जम्म-मरणाई ॥ जर पुण पुण्यं द्रो ता कीस ण होइ म कम्म-खो । दावाग्मि जलिए तण-रासी फेबिरं ठाउ ॥ महवा भावेण विणा दग्वेणं पाविओो मए आसि । जाव ण गहिओ चिंतामणि त्ति ता किं फलं देह ॥ ता संप पत्तो मे भाराम्बड मए पयवेगंज जम्मण मरणानं दुक्खाणं अंतमिच्छामि ॥ चिमणमाणो महारद साहू भव्य-करणे सवग-सेनिं समारुडो कह
६ ४२६) झोसेद्द महासत्तो सुकझाणाणलेण कम्म तरं । पढमं भणत-णामे चत्तारि वि चुण्णिए तेण ॥ अण्ण-समएण पच्छा मिच्छतं सो खवेद्द सन्धं पि । मीसं च पुणो सम्मं खवेद्द जं पुग्गलं मासि ॥
16
18
21
24
27
सारं जीवं पारं पुब्वा चोइस पि ॥
पंच-नमोकार मनो अवस्स देवर्ण लहइ ॥
Jain Education International
P
1 ) P नमोक्कारा, J om. करण, Pलब, P पावं पणासेमि- 2 ) Pom. गुत्ते, P -विच्छत्तपत्त, पणिदतामि. 3 ) JP समितीसु J जवे P जहे, J परिसोल गंमि, P परिमुके- 4 ) P पारंपरे पत्तो. 5) सण्णी, P विप्पजढो, P संजुत्तो, १ मि for पि. 6 ) P परिसबल, पवणे, उपसग्गग्गे सहे परम्मि 7 ) Pom. समणे सुवणे, Padds दुक्खदायस्स after पंकस्स, स एव for य सच्चए साडू साहू. 8) P. 9 Pom.] अनदरेज जं पावे ela to साहून गोकारो कीरतो. 10 ) १ मेत्तसमिद्धो (1) सोक्खं दी च P मोक्खपदीवं. 12) P पुरिसाण पंचेन, ता णमोकारो. 13 ) P सेय, होइ for परम, P परमं, 3 adds पर before पुण्. 14 ) 3 एवं, P वरवरथं, J अमयं for परमं, P सोयं for सारं सारं for पार्ट- 15 ) P परो for मणों. 16) मि for पि, P adds नोगं before नो. 17 ) P समुद्दम्मी अपत्तदब्वं च माणिकं ॥ कयाई रयणारं व. 18) P अमतुलं, P मज्ज. 19 ) P दुलझे सो. 20 ) P जलगा व्ब, १ सीलो परिवहजुतं, जिणे. 21) P महोयहं नमंतेहिं 122) P पुण्ण for पुण, P दावानलंमि, P जाओ for ठाउ 23 ) P दव्वेगं भाविओ, P जाव न हियओ. 24 ) P आराहेयम्वो, Jom. मए, पयत्तोगं, दुक्खाणं इच्छसे अंत ॥. 25 ) Pom. ति, P खवगसेढी, 3 adds अवि य after कह. 26) * सोसेर, सुकज्जालान लेण, P अनंतनामो 27 ) 3 तं for जं.
२७९
For Private & Personal Use Only
1
12
15
18
21
24
27
www.jainelibrary.org.
Page Navigation
1 ... 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394