Book Title: Kuvalayamala Katha Sankshep
Author(s): Udyotansuri, Ratnaprabhvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
उजोयणसूरिविरहया
॥
।
1 पण जिंदिल है इमरस पार्व करेमि ता बहुयं ण कमाइ बीयरागो भगवं सिंतेहि वियप्यं ॥ जेण ण मणो ण रागो ण य रोसो तस्स णेय सा इच्छा । णिक्कारणं णिरत्थं भ्रमण को चिंतितं तरह ॥ तो गोदम भुइ-फलमडलं तु पावर पुरिसोनंदतो जिंदा-फलमया अह णरयवडणाई ॥ सम्दा एको भगवं पुण्ण- फलो होइ पाव-हेऊ व विस-भणणिवा वह वर्णतो मए भणिमो ॥ मार्चिते विययं गोदम दम्बाई होति लोगग्मि अवरोप्यरं विरोहो जाणसु मद्द दीसए पयढो ॥ जह अम्मी पञ्चलिन सावण-उमोव च सो कुमइ भरहा वह व पयास पावस्य ताव कुछ ॥ गोदम जह व रसिदो अमिलो अमिग्झ-पक्लित्तो फुडिऊण तक्खणं चित्र दिसो दिसं बच अदि ॥ सहज-स-लगेण तावियो पाव-पारय-रसोहो एत्तिय सति विलिन नसतो संगम तस्स ॥ जद रविणा तिमिरोहो तिमिरेण वि चक्खु दंसणं सहसा । दंसण- मोहेण जहा णासिज्जइ कद्द वि सम्मतं ॥ तह गोदम जिण दंसण-जिण-चिंतण जिणवराण वयणेहिं । णासह पाघ-कलंकं जिण-वंदण-जिण-गुणेहिं च ॥ एवं व साहिए सयल-पुरिसिंद पुंडरीएण भगवया णाय कुलंबर- पुण्णयंदेण जिण-चंद्रेण पडिवण्णं सब्वेहि मि आबद्ध-कर12 कमल-मडल-सोहेहिं तियसिंदप्यमुदेहिं सयल-सत्तेहिं ।
२५८
3
6
9
६ ३९७) एथेतरम्मि पविद्धो को बंभण-दारको समवसरणम्मि केरियो। अवि य सामल-वच्छत्थल- घोलमाण- सिय-बम्ह-सुत्त सोहिल्लो । पवणंदोलिर-सोहिय-कंठद्ध - णिबद्ध-वसणिल्लो ॥ 16 तिगुणं पयाहिणीकओ गेण भगवं पायवडण- पबुट्टिएण य भणियं तेन भगवे,
को सो वमम्मि पक्खी माणूस मासाएँ अपए किंवा जं तेण तत्थ भणियं तं वा किं सचयं सम्यं ॥ भगवया भणियं ।
[६३९६
33
18
देवाणुपिया सुपर जो सो पक्खी वणम्मि सो दियो जं किंचि तेण भणियं सर्व सोम्म सर्व्वपि ॥ तेण भणिये ।
जड्
भगवं जह से खयं वणम्मि जे परिक्षणा वहिं भणियं ता रचणाणि इमाई वा सामीण उपपेमि ॥ 21 भगवया आइ ।
देवाणुपिया जुज्जह पच्छायावो बुदाण काउं जे। दिट्टो बिय तम्मि वडे तुमए पक्खीण ववहारो ॥ एवं भणिय मे णिवंतो समवसरणाको सो भण-दारो तलो पुच्छिओ भगवं जाणमाणेणावि गोयम-गणहारिणा । 24 'भगर्व,
24
1
12
Jain Education International
15
For Private & Personal Use Only
को एस दिवाह- सुनो किंवा एएन पुच्छिमो भगवं । को सो वणम्मि पक्खी किंवा सो तत्थ मेते ॥
एवं च पुच्छिओ भगवं महावीरो साहिउं पयत्तो । ' अस्थि णाइदूरे सरलपुरं णाम बंभणाणं अग्गाहारं । तत्थ जष्णदेवो 27 णाम महाधणो एको चउब्वेभो परिवसह । तस्स य जेट्ठउत्तो सयंभुदेवो णाम । सो य इमो । एवं च तस्स 27
18
बहु सयण- जण वेय-विजा-धण-परिवारियस्स वञ्चति दियहा । एवं च वर्षांचंतेसु दियहेसु, अवस्सं भावी सग्व-जंतॄण एस मधू, तेण य सो जण्णदेवो इमस्स जणभो संपुण्णणिय आउवप्यमाणो परलोग पाविनो । इओ व सम्यं भर्थ परिवमार्ण 30 हि पावियं सम्वहा तारिणं कम्म परिणामेण से ताज मत्थि जं एम दियह असणं तमो एवं च परिविय लिए 30 विवेण कीरति लोगयत्तानो, विसंवर्यति अतिहि सकाराई, सिडिलियान बंभण-किरियामो,
1
बहथियाई दि
दाणाई ति । सव्वा,
गुरु-गिद्ध भिन्द्य-बंधव-परियण-जण सामिणो य पुरयम्मि । ता मण्णिजह पुरिसो जा विवो अस्थि से तस्स ॥
21
J
1 ) P कयावि, JP चिंतेहिति. 2 ) P तम्हा for अमणं. 3 ) P गोयम, JP थुति, J पावई, P निर्दितो, फल अहवा. 4 ) J हेतू, P थंभणे निव्वाहो जर, P भणियं ॥ 5 ) P गोयम, J लोभम्मि 7 ) P गोयम, P फडिऊण, P -दिसिं वञ्चर. 8 ) P असंतो संगमं. 9 ) Pom. वि. 10 ) P गोयम, Pom. दंसण, Pom. वंदणजिण, P adds सि after च. 11) भगवता J 14) P बंभ for बम्ह. 15) णिडणं पयाहिणिकओ, Pतिगुणीं, पायवडणणु, Pom. पायवडण etc. to भगवं. 16) P after तत्थ repeats भणितिगुणाहीको मग पावडर भणिदं तेण भग को for भणिदं तं वा किं elo to सुब्बउ जो. 18) Pom. पक्खी, P सोम सव्वं 20 ) P रयणाई, तंपि for ताणं, P सामाण उप्पेमि 21 P भणियं for आइहूं. 22 ) P दुहाण for बुहाग. 23 ) P भणियमेत्तो, om. तओ पुच्छिओ, गोदम. 25 ) P एतेन, P om. किं. 26 ) P अग्गहारं । जत्थ 27 ) P जेट्ठो उत्तो. 28 ) P वर for घण, व असब्वं भावी P अवस्सभावी 29 ) णिअयाउअ P नियआओय परलोअं, इतो, Pom. थ, P परिसयलमाणं. 30 ) P तारिसाणं, उता for तं, P ता for ताण, P असण्णं, P परियलिए 31 ) P फीरवंत, सोनी, सकार बंधु for 33 for कि
अहत्विदानगिदाणा
) P निद्द
38
www.jainelibrary.org.
Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394