Book Title: Kuvalayamala Katha Sankshep
Author(s): Udyotansuri, Ratnaprabhvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 273
________________ २५४ 1 3 в 9 12 15 18 21 24 27 30 उज्जोयणसूरिविरया ९ ३८८ ) एवं च तय-दिय हे पहाय-वेलाए पुणो वि भणिउं समाढतो । भवि य । कीरत भोग-पसंगो ज फिर देहम्मि जीवियं अचलं न उड़ण काम पडिद्दि जडवे ॥ पाव काऊण पुणो लगइ धम्मम्मि सुंदरो सो वि । सा वि सह शिय णरवर जा एद्द पहाय - समयम्मि ॥ मा अच्छ संसारे णिचिंतो वीर बीह मच्चुस्स । मयरेण सह विरोहो वासं च जलम्मि णो होइ ॥ भोग-तिसिओ वि जीवो पुण्णेहिं विणा ण चेय पावेइ । उट्ठो जइ परिओ चिय पंगुरिओ भणसु सो केण ॥ धम्मं ण कुणइ जीवो इच्छइ धम्मप्फलाइँ लोगम्मि । ण य तेल्लं ण य कलणी बुड्ढे तं पयसु वडयाई ॥ जो कुणइ त इह सो पर छोए सुहाई पावे। जो सिंह सहयारे सो साउ-फलाई चक्लेइ ॥ अह इच्छसि परलोगो हद्द धि मह णवर ण परं । दोतस् य णरवर अपरस फिर णास एकं ॥ जो अलसो गेहे श्चिय धम्मं अहिलसह एरिसो पुरिसो वडवड मुहम्मि पडिया भाजय- मज्झमि तं भणसु ॥ इय धीर पाव- भोए भोक्तुं णरयम्मि भुंजए दुक्खं । खासि करंबं णरवर विडंबणं कीस णो सहसि ॥ ३०९) एवं पुणो व्य-दिवह राईए पभाव समए णिसुर्य परिजमार्ग जय महारावाहिराय सेविय जाणामि कमल-मउषु चलने एवाण तुझ उपण सर न होंति नरए कुप्पेनसुतं च मा धीर ॥ कोमल-कदली- सरिसं ऊरू-जुयलं ति जाणिमो वीर । णरए ण होइ सरणं मा कुष्पसु तेण तं भणिमो ॥ एयाण नियंबडं पिहुलं कल-कणिर-कंचि दामिलं । णरए ण होइ सरणं वीरम्हे जूरिमो तेण ॥ पीर्ण पचल-तुंग द्वारावलि-सोहिये च यणव गरए ण होइ सरणं भणामि धम्मक्सरं तेण ॥ विवसिय सय-निर्भ मुहं जइ वि वीर जवईण गरए ण होइ सरणं तेन दिये तुझ तं भणिमो ॥ दीहर- पहल - धवलं णयण-जुयं जद्द वि वीर जुवईण । णरए ण होइ सरणं चिंता मह तेण हिययमि ॥ इय जाणिण णरवर ताणं सरणं च णत्थि जरयम्मि । तम्हा करेसु धम्मं जरयं चिय जेण णो जासि ॥ ६ ३९०) एवं च पुणो पंचम दिवद्द राईए पहाय-समय- वेलाए पुणो पटियं जय महारायाद्विराय, जय, समी गएण णस्वर तिवासंद विलासिणी सह रमिवं कंतार-बंभणस्स व पज्जत्ती णत्थि भोएस ॥ मणुपसणे वि र बहुसो भुतं चलंत चमरालं जीवस्स णत्थि तोखो रोरस्स व धन-णिहारण ॥ असुरतणे वि बहुसो बलवंतो देवि-परिगमो रमिनो तह विण जाय तोसो जणस्स व वीर कहिं ॥ जक्खत्तणम्मि बहुसो रमियं बहुयाहिँ जक्ख-जुबईहिं । तह वि तुह णत्थि तोसो गरिंद जलहिस्स व जलेहिं ॥ बहुसो जोइस वासे देवीयण परिगएण ते रमिये। वह विण भरियं चित्तं णरिंद गय व जीवहिं ॥ इय णरवर संसारे पत्ता सुहाई एत्थ बहुबाई जीवस्स ण होइ दिदी वह रामो तह व एहि ॥ ६ ३९१ ) एवं दिव-राईए पमाय-समय पुणो पढियं जय महारायाद्विराय, जय भवि य सूजारोवण-संभण-वेयरणी-को- पाण- दुखाई मा पन्हुस चित्तेनं मा होसु असंभलो पीर ॥ बंध हणेल त्यण-गुरु- भारारोवणाई तिरियते । पद्वाइँ खणेणं किं कर्म तुम्ह गरणाह ॥ जर खास सोस- वाही- दूसह दारिद्द- दुम्मणरसाई पत्ताई मणुयते मा पम्हुस वीर सच्चाई ॥ अभियोग पराणची चरण-पलावाएँ वीर देवते । दुक्खाई पम्हुतो कि अण्णं कुणसि हिययमि ॥ असुर-मल- रुदिर-कदम वमालिनो गम्भ-वास- मज्झम्मि यसिनो सि संपर्थ चिय धीर तुमे कीस पडु ॥ कोडियंगमंगो किमि ब्व जणणीए जोणि-दारेणं । संपइ णीहरिओ चिय पम्हुट्ठे केण कज्जेणं ॥ 1 Jain Education International [ ३८८ For Private & Personal Use Only 1 6 12 15 18 21 24 P 1 ) 3 पुणो पढिउमाढतो. 2 ) P भोय, कीर for किर, P अयलं, JP पडिहिति, P नडवेयर्ड 3 ) पति पभाय-, P कार्ल मि for समयम्मि. 4) विब्भ for बी, वासो, Jom. च, P किं for गो. 5 ) P उद्धो वत्थविहिओ केण सो भणसु for the second line उट्ठो जइ eto. 6 ) लोअम्मि, P वयडाई. 7) जो किर धावर णरवर सो खायर मोरमंसाई for the second line जो सिंचइ eto., P से for सो, नरवेई for चबखेइ 8 ) 3 परलागो णत्थि अह इहं ण परं । दोलंतरस, P इह नवरं न य तेलं । 9 ) P अहिसर, पडया, मज्झं पि तं भणया ॥. 10 मोरिस for मुंजर, विलंब की जो सहसि. 11 ) 3 जय महाराजाहिराजसेविय. 12 ) P जुवईण, होइ for होंति, तंसि मा धीर. 13 ) कयली, P - जुवलं, P जाणि नो वीर, धीर for वीर 14 ) P किंचि for कंचि, P वीरम्हे झूरिमो. 16 Pinter. जइ वि & वीर, P जुवतीण, Pom. ण. 17) Jदीहरवम्हल, P -पंभल, P जुवतीण. 18 ) P नरयंति । 19 ) P रातीए, Pom. समय, P भणियं for पढियं. 20 ) P रमिडं धज्जती for पुज्जती 21 ) Padds ण before वि, P चत्तं for भुतं, P घणनिदाणेण 22 ) P परगओ, P सार for वीर. 23 ) P रमिओ, P adds डुं before नक्ख, P जुवतीहिं, P जलणरस व जलणेहिं. 24 ) जोतिस, परिगए ते, P रमिडं, गयणं जादेहिं . The letters on this folio (No. 227) in J are rubbed and not olearly readable. Padds, after जीवेहिं । three lines : इय नरवर संसारे पत्ताई सुहाई एत्थ बहुसो । जोइसवासे देवीयण परिगएण ते रमिउं ॥ तह वि न भरियं चित्तं नरिंद गयणं च जीवे हि 1. 25 ) P संसा for संसारे, P होइ दीही वट्टर, Padds before राओ 26 ) P -राती पहाय-, P पुवि for पुणो 27 ) P सूलारोयणेणं किं कज्जं तुम्ह, i. e., it omits a portion of about three lines ending with पम्हुट्टाई खणें. 29 ) P खासे, P दुमणरसाई 30 ) अहियोग, अभिगम पराणत्ती कंकणपलवाई वीर, P कुणसे. 31 J कमपमालिओ, Jom. वसिओसि. 32 ) जणणीय जोणिभारेणं. 27 80 www.jainelibrary.org.

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