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कविवर
नूचराज
गहन अध्ययन के पश्चात् १७ वर्ष की आयु में ये उपाध्याय बन गये । जब २८ वर्ष के थे तो ये श्राचार्य पद से सम्मानित किये गये । साहित्य निर्माण में इन्होंने गहन रुचि ली और पर्याप्त संख्या में ग्रन्य निर्माण करके एक कीर्तिमान स्थापित किया । इनकी भाषा टीकायें प्रसिद्ध हैं जिनमें राजस्थानी गद्य के दर्शन होते हैं ।" संवत् १५६७ में इन्होंने वस्तुपाल तेजपाल रास की रचना समाप्त की थी।
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१२. भक्तिलाभ एवं चारुचन्द्र
भक्तिलाभ एवं चान्द्र दोनों गुरु शिष्य थे । राजस्थानी भाषा में इन्होंने कितने हो स्तवन लिखे थे। ये संस्कृत के भी अच्छे विद्वान थे । चारुचन्द्र ने संवत् १५७२ में बीकानेर में उत्तमकुमार चरित्र की रचना की थी
१३. याचक विनयसमुद्र
ये उपवेशीय गच्छ वाचक हर्षसमुद्र के शिष्य थे। मब तक इनकी ३० रचनाएं उपलब्ध हो चुकी है जिनका रचना काल संवत् १५८३ से १६१४ तक का है। इनको विक्रम पंचदंड सीपई (सं० १५८३) आराम शोभा चौपई (स० १५८३) प्रम्ब चौपई (सं० १५६६) मृगावती चौपई (स० (सं० १६०४) पद्म चरित्र (सं० १६०४) श्रादि के नाम उक्त कवियों के अतिरिक्त इन ४० वर्षों में जिन्होंने हिन्दी में विपुल साहित्य का निर्माण किया था। भण्डारों में ऐसे कवियों की खोज जारी है ।
१६०२ ) पद्मावती रास उल्लेखनीय है 14
और भी जैन कवि हुये हैं देश के विभिन्न शास्त्र
ब्रह्म बूचराज
कविवर ब्रह्म वृचराज विक्रम की १६ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के कवि थे । वे भट्टारकीय परम्परा के साधु थे तथा ब्रह्मवारी पद को सुशोभित करते
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थे । कवि ने अपना सबसे अधिक जीवन राजस्थान में ही व्यतीत किया था और एक स्थान से दूसरे स्थान पर बराबर विहार करके यहाँ की साहित्यिक जाति में अपना योग दिया था। रूपक काव्यों के निर्माण में उन्होंने सबसे अधिक रुचि ली साथ हो जन सामान्य में अपने काव्यों के माध्यम से आध्यात्मिकता का प्रचार प्रसार क्रिया ।
१.
राजस्थान का जैन साहित्य पृष्ठ १७३ ।
२. हिन्दी रासो काव्य परम्परा -पृष्ठ १३६-९७ १ राजस्थान का जैन साहित्य पृष्ठ १७३ ।
३.
४. विस्तृत परिचय के लिए- राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल – पृष्ठ ६६-७६.