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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
इय पुण्य चरिय संबन्ध ललिग्नंग नुप संबंध । पह पास परियह चित्त उद्धरिय एह चरित्त ।।
७. बालचन्द
इन्होंने संवत् १५८० में राम-सीता चरित्र की रचना की थी ।। ८. राजशील उपाध्याय
खतरगच्छ के साधु हर्ष के शिष्य थे। इन्होंने संवत १५६३ में चित्तौड़ नगर में 'विक्रम चरिन चौपई' की रचना की थी। रचना कास एवं रचना स्थान का पर्णम निम्न प्रकार दिया हुमा है ।
पनरसह त्रिसठी सुविचारी जेठ मासि उजान पाखि सारी ।
चित्रकूट गढ तास मझाई भासा भभियण जय जयकारी। १. वाचा धाम
धर्मसमुद्र पाचक विवेकसिंह के शिष्य थे। अब तक इनको निम्न रचनाएं प्राप्त हो चुकी है।
सुमित्रकुमार रास - संवत् १५६७ गुणाकर चौपई - संवत् १५७३ कुलदज कुमार - संवत् १५८४ सुदर्शन रास समाय
१०. सहजसुन्दर
ये उपाध्याय रनममुद्र के शिष्य थे। संवत् १५७० से १५९६ तक लिखी नई इनकी २० रचनायें प्राप्त होती हैं। इनमें इलातीपुष सज्झाय, गुण रत्नाकर
छन्द (सं० १५७२), ऋषिवत्ता रास, पात्मराग रास के नाम उल्लेखनीय है । ११. पाश्र्वचन्द्र सूरि
पावचन्द्र सूरि का राजस्थानी जैन कवियों में उल्लेखनीय स्थान है। इन्हीं के नाम से पावचन्द्र गच्छ प्रसिद्ध हुना था । ६ वर्ष की प्रायु में ये मुनि मन गर ।
१. मिश्रबन्धु विनोद, पृष्ठ संख्या १४४ । २. राजस्थान का जैन साहित्य, पृष्ठ संख्या १३२ । ३. राजस्थान का जैन साहित्य, पृष्ठ संख्या १७३ ।