Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 8
________________ उदय में आने से सम्यक्त्व की विराधना होने पर सम्यग्दर्शन गुण की जो अव्यक्त अतत्त्व-श्रद्धानरूप परिणति होती है उसे सासादन गुणस्थान कहते हैं। अथवा अनन्तानुबन्धी कषाय में से किसी एक का उदय होने से सम्यक्त्व परिणामों के छूटने पर और मिथ्यात्व प्रकृति के उदय न होने से मिथ्यात्व परिणामों के न होने पर मध्य के काल में जो परिणाम होते हैं, उसे सासादन गुणस्थान कहते हैं। प्रश्न : अनन्तानुबन्धी के उदय से यदि सम्यक्त्व का नाश होता है तो उसे दर्शनमोहनीय के भेदों में गिनना चाहिए। यदि वह चारित्रमोहनीय का भेद है, तो उससे सम्यक्त्व की विराधना नहीं हो सकती, ऐसी अवस्था में सासादन गुणस्थान कैसे हो सकता है ? उत्तर : अनन्तानुबन्धी कषाय चारित्रमोहनीय का भेद है, फिर भी अनन्तानुबन्धी कषाय में सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र दोनों को ही घात करने का स्वभाव है अर्थात् अनन्तानुबन्धी कषाय द्विस्वभाववाली है। यह कषाय सम्यक्त्व का घात करती है और अप्रत्याख्यानावरणादि कषायों का अनन्त प्रवाह बनाये रखती है, इस प्रकार अनन्तानुबन्धीPage Navigation
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