Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 6
________________ ।। श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमो नमः ।। ।। श्री शान्ति-वीर-शिव-धर्माणित-वर्थमान- सूरिभ्यो नमो नमः1। करणानुयोग दीपक अक्षम माना १. प्रश्न : करणानुयोग किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसमें गुणस्थान, मार्गणा एवं जीव के भावों का लोक-अलोक का तथा कालचक्र आदि का वर्णन होता है उसे करणानुयोग कहते हैं। २. प्रश्न : गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : मोह और योग के निमित्त से होने वाले आत्म-परिणामों के तारतम्य को गुणस्थान कहते हैं। ३. प्रश्न : गुणस्थान के कितने भेद हैं ? उत्तर : गुणस्थान के चौदह भेद हैं- १. मिथ्यात्व, २. सासादन, ३. मिश्र, ४. अविरत सम्यक्त्व, ५. देशविरत, ६. प्रमत्तविस्त, ७. अप्रमत्तविरत, ८. अपूर्वकरण,

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