Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 7
________________ ६. अनिवृत्तिकरण, १०. सूक्ष्म साम्पराय, ११. उपशान्तमोह, १२. क्षीण-मोह, १३. सयोगकेवली और १४ अयोगकेवली। ___ ४. प्रश्न : मिथ्यात्य गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से होने वाले तत्त्वार्थ के अश्रद्धानरूप परिणामों को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। इन परिणामों से युक्त जीवों को मिथ्यादृष्टि कहते हैं। ५. प्रश्न : मिथ्यादृष्टि के कितने भेद है ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि के दो भेद हैं- १. स्वस्थान मिथ्यादृष्टि और २. सातिशय मिथ्यादृष्टि । जो जीव मिथ्यात्व में ही रच-पच रहा है, उसे स्वस्थान मिथ्यादृष्टि कहते हैं। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के सम्मुख जीव के जो अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप परिणाम होते हैं, उनसे युक्त जीव को सातिशय मिथ्यादृष्टि कहते हैं। ६. प्रश्न : सासादन गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रथमोपशम सम्यक्त्व अथवा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के अन्तर्मुहूर्त मात्र काल में से जब जघन्य एकसमय तथा उत्कृष्ट छह आवली प्रमाण काल शेष रहे, उतने काल में अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ में से किसी के भी (२)

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