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अध्ययन-अध्यापन में रत हैं। उनकी अनेकानेक अनूदित और मौलिक कृतियों से प्रत्येक स्वाध्यायी सुपरिचित है। अभी हाल ही उन्होंने आचार्य वीरनन्दी के 'आचारसार' का प्राचीन प्रतियों से पाठ भेद लेकर नवीन सम्पादन-अनुवाद किया है, यह संस्करण शीघ्र ही उपलब्ध होगा।
प्रस्तुत प्रकाशन करणानुयोग दीपक प्रथम भाग का नवीन संशोधि त परिवर्यिंत द्वितीय संस्करण है। प्रथम संस्करण में १६६ प्रश्नोत्तर थे, इस संस्करण में इनकी संख्या २६२ है। इस संस्करण को सँवार कर इसकी प्रेसकॉपी करने का श्रम पूज्य आर्यिका १०५ श्री प्रशान्तमती माताजी ने किया है।
ब्र. भावना ने इसके प्रकाशन हेतु अर्थ-सहयोग प्रदान किया है। ___ मैं पूज्य आर्यिका प्रशान्तमती जी, आदरणीय पण्डित पन्नालाल जी और ब्र. मावना बहन व महासभा के प्रकाशन विभाग के प्रति इस उपयोगी प्रकाशन हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ तथा श्रुत-साधना के लिए प्रेरणास्रोत पूज्य आर्यिका विशुद्धमती माताजी के चरणों में अपना सविनय नमोस्तु निवेदन करता हूँ जिनके आशीर्वाद से मुझसे भी जिनवाणी माता की यत्किकिंचित सेवा बन जाती है। प्रकाशन में रही भूलों के लिए सविनय क्षमा चाहता हूँ।
आषाढ़ी अष्टान्हिका, वि. सं. २०५० जून, १६६३
विनीत डॉ. चेतन प्रकाश पाटनी
जोधपुर