Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 3
________________ और सरल करके आज के भोगासक्त मानव-मस्तिष्क को जो सुगम साहित्य दिया है, वह अतिस्तुत्य कार्य है। इतनी वृद्धावस्था में भी आप अनवरत माँ सरस्वती की सेवा में संलग्न रहते हैं, यह बात प्रत्येक आत्महितैषी के लिए अनुकरणीय है। मेरी भावना थी कि पण्डित जी सा. चारित्र में आगे बढ़ते, शारीरिक परिस्थितिवश ऐसा नहीं हो सका। अब आपका उपयोग अन्त-पर्यन्त जिनवाणी की सेवा में रत रहे, यही मेरी हार्दिक भावना है। ___ अध्ययन हेतु ब्र. भावना ने ही इस पुस्तक की जीरोक्स कॉपियाँ करवाई थीं। अतः उनके परिणाम इसे प्रकाशन कराने के हुए हैं। सरस्वती सेवा के उनके परिणाम इसी प्रकार बनते रहें, यही मेरा आशीर्वाद है। - आर्यिका विशुद्धमती श्रुतपंचमी सं. २०५० सन् १६६३

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