Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 4
________________ आमुख जैन वाङ्मय में करणानुयोग की जटिलता सुविदित है। प्रामाणिक ग्रन्थों में औसतबुद्धि पाठक का प्रवेश असंभव ही रहता है। गुणस्थान, मार्गणा और जीवसमास की सम्यक् अवधारणाओं को आत्मसात किये बिना इस दिशा में कथमपि आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। अतः इन गहन विषयों को सरल और सुबोधरूप में (Madc Easy) प्रस्तुत करने की जा सकता है । इस दिशा में काम हुए भी मैं, मी उपादेयता से नकारा भी नहीं जा सकता। करणानुयोग, द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग पर प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री की पुस्तकें चीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी से प्रकाशित हुई थीं जो अब अप्राप्य हैं। पं. पन्नालाल जी द्वारा लिखित 'द्रव्यानुयोग प्रदेशिका' का एक संस्करण शान्तिवीरनगर से निकला था, वह भी अब उपलब्ध नहीं है। इनसे पूर्व गुरूणां गुरु श्री गोपालदास जी बरैया ने 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' प्रश्नोत्तर शैली में लिखी थी, यह बड़ा उपयोगी प्रकाशन था पर आज यह भी सुलम नहीं है। श्री भारतवर्षीय दि. जैन महासभा ने इस शैली की पुस्तकों के प्रकाशन का महत्त्व समझकर इस दिशा में कदम रखा, फलस्वरूप करणानुयोग दीपक भाग १, २, ३ का प्रकाशन क्रमशः १९८५, १६८७ और १६६० में हुआ। इन तीनों पुस्तकों के लेखक पं. पन्नालाल जी जैन साहित्याचार्य जैन जगत् के विश्रुत विद्वान् हैं। वे अनवरतPage Navigation
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