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( ईसाणंत ) ईशानान्त-- ईशान देवलोक तक के ( सुराणं) देवताओंकी ( उच्चत्तं ) ऊँचाई (सन ) सात ( रयणीओ) ( रलि - हाथ ( हुंति ) होती है: ( दुग-दुग-दुग-चर गेविजणुत्तरे) दो, दो, दो, चार, नययैवेयक और पाँच अनुत्तरविमानोंके देवोंका शरीर-मान ( इकिक परिहाणी ) एक एक हाथ कम है ॥ ३३ ॥
भावार्थे- दूसरा देवलोक, ईशान है, वहाँके देवोंका तथा भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म देवांका शरीर सात हाथ ऊँचा है; सनत्कुमार और माहेन्द्रके देवोंका शरीर छह हाथ ऊँचा है: ब्रह्म और लान्तकके देवका पाँच हाथः शुक्र और सहस्रारके देवोंका चार हाथ आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार देवलोकोंके देवोंका तीन हाथ; नवयैवेयकके देवोंका दो हाथ और पाँच अनुत्तर विमानवासी देवोंका एक हाथ ऊँचा है.
यहाँ जीवोंका शरीर-मान उत्सेधाङ्गलसे समझना चाहिये. प्र०—उत्सेधाङ्गुल किसको कहते हैं? बावीसा पुढवीए, सत्तय आउस्स तिनि वाउस्स। वास सहस्सा दस तरु, गणाण तेऊ तिरत्ताऊ ॥ ३४ ॥
उ० – आठ यर्वोका एक उत्सेधाङ्गुल होता है..
( पुढवीए) पृथ्वी काय जीवोंका आयु ( बावीसा ) बाईस हजार वर्षका है ( आउस्स) अपूकाय जीवोंका आयु | ( सत्तय ) सात हजार वर्षका ( वाउस्स) वायुकाय जीवोंका आयु ( तिन्नि) तीन हजार वर्षका ( तरुगणाण ) प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीव-समुदायकी आयु (चास सहस्सा दस ) वर्षसहस्र - दश अर्थात् दस हजार वर्षका ( तेऊ ) तेज:काय जीवोंका ( तिरत्ताऊ ) तीन अहोरात्रका आयु है || ३४ ॥