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भावार्थ-निषध और नीलवंत यह दो पर्वत च्यारसें योजन उंचे और क्रमसे तपेहुए सोनेके और नीलेरसके । है ॥२८॥
सवेवि पवयरा, समयखित्तम्मि मंदरविणा ! धागि तलेमुवगाढा, उस्सेह चउत्थ भायम्मि ॥२९॥ MRI अर्थ-इस (समय खित्तम्मि) समयक्षेत्र याने जिस क्षेत्रमें समयकी गिणना होती है उसमें (मंदर वितुणा)
पांच मेरु पर्वतोको छोड शेष जितने शास्वते (पषयरा) पर्वत है वो (सधेवि) सर्व अपने (उस्सेय) उच्च प्रमाणसे || (चउत्थ भायम्मि) चोथा भाग (धरणितले) जमीन के अंदर (उवगाढा) अवगाह्य याने दटे हुए है। और समयक्षेत्र जिसको अढाइ द्वीप समझना चाहिये उसमें जो पांच मेरु पर्वत है इन पांचोंके अन्दर जंबुद्वीपका जो मध्य मेरु है वो निन्नाशुं हजार योजन उचा और एकहजार योजन जमीनके अन्दर है एवं यह मेरु सब मिलकर एक लाख योजनका है । अत एव शेष च्यार मेरु एक २ हजार योजन जमीनमें और चउरासी २ (८४) हजार योजन उंच पनेमें है ॥ २९॥
भावार्थ- इस समय क्षेत्रयाने अढाइ द्वीपमें पांच मेरु पर्वतोको छोड शेष जितने शास्वते शैल है उनकी उच्चाइ भागके चौथे हिस्सेका भाग भूगर्भ में है, और पांच मेरु पर्वतोंके अंदर जो जंबुद्वीपका मध्य मेरु है वो निन्नाणुहजार योजन उच्चा और एकहजारयोजन भूतले, एवं लाखयोजनका जानना ॥ शेष च्यारों मेरु एक २ हजार योजन भूगर्भ में और चउरासी २ हजार योजन उंचपनेमें है ॥ २९ ॥
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