Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 245
________________ RALATKAR "तन्मयतावस्थानाधारताधभेदेन अभेद स्वभावः" तण तन्मयता अवस्थानतानो अभेद छे अने आधारतानो पण अभेदपणो छे ते अभेद स्वभाव छे. तथा भेदनो जो अभावपणो मानिये एटले वस्तुमा भेदपणो न मानियें तो सर्वगुण तथा पर्यायनो संकर के० एकमे-12 ४ कपणो ए दोष लागे, तो गुणी कोण ? तथा गुण कोण? द्रव्यकोण ? एम गुणपर्यायने केइ द्रव्यनो कयो पर्याय एम। बेहेंचण थाय नही. गुण तथा गुणी तथा जे ओलखवा योग्य लक्षण तेनु चिह्न तथा कारणधर्म तथा कार्यधर्मता ए वे जुदा पडे नही. कार्यधर्म तथा कारणधर्मनो ना शधाय माटे वस्तुमां भेद स्वभाव मानवो. | तथा जो वस्तमां अभेदपणो न मानिये तो स्थानध्वंस थाय छेजे स्थान कोण? अने ते स्थानकमां रहे ते कोण छ। | इत्यादिकनो अभाव थाय छे. एम विचारतां सर्वथा एकपणो मानता कोण गुणी ? अने कोण गुण ? एम ओलखाण न थाय. ए रीतें भेदाभेद स्वभाव वस्तुमा मानवा. परिणामिकत्ये उत्तरोत्तरपर्यायपरिणमनरूपो भव्यस्वभावः तथा तत्त्वार्थवृत्तौ इह तु भावे द्रव्यं भव्यं भवनमिति गुणपर्यायाश्च भवनसमवस्थानमात्रका एवं उत्थितासीनोतृकुटकजागृतशयितपुरुषवत्तदेवच वृत्त्यंतरव्यक्तिरूपेणोपदिश्यते, जायते, अस्ति विपरिणमते, वर्द्धते, अपक्षीयते, विनश्यतीति पिण्डातिरिक्त वृत्त्यंतरावस्थाग्रकाशतायां तु जायते इत्युच्यते सव्यापारैश्च

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