Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 276
________________ ** * अर्थ-हवे शब्दनयन स्वरूप कहिये छैयं शपति के० बोलावे तेने शब्द कहिये अथवा शपियें वोलावियें वस्तुपणे ते शब्द कहिये ते शब्दें जे वाच्य अर्थ तेने ग्रहे एहवो छ प्रधानपणो जे नयमां तेपण शब्दनय कहिये जेम कृतक ते जे कयों तेनो हेतु जे धर्म ते जे वस्तुमां होय ते बोलाय एटले शब्दनुं कारण तो वस्तुनो धर्म थयो जेम जलाहरण धर्म ज घट कहिये छर्य एम इहां पण शब्द वाच्यअर्थ ग्रहे ते माटे ते नयनो नाम पण शब्द कहेवाय जेम ऋजुसूत्रनयन वर्तमानकालना धर्म इष्ट छ तम शब्दादिकनयने पण वर्तमानताना धर्मज इष्ट छे. । केमके पेटे पृथु के० पहोलो बुन के० गोल संकोचित उदरकलितयुक्त जलाहरणक्रियाने समर्थ प्रसिद्ध घटरूप भावघट तेनेज घट इच्छे छे पण शेष नाम स्थापना अने द्रव्यरूप त्रण घटने ए शब्दनय घट माने नहीं घट शब्दना अर्थने ते संकेतनेज घट कहे. घट धातु ते चेष्टावाची छे अतः कारणात् के. ए कारणपणा माटे ए शब्दनय ते चेष्टाकोनेज घट कहे एटले ऋजुसूत्रनय चार निक्षेपा संयुक्तने घट माने अने शब्दनय ते भावघटनेज घट माने एटलो विशेषपणो , छे. शन्दना अर्थनी जिहां उपपत्ति होय तेनेज ते वस्तुपणे कहे एटले ऋजुसूत्रनये सामान्य घट गवेष्यो अने शब्दनये सद्भाव जे अस्तिधर्म तथा असद्भाव जे नास्तिधर्म ते सर्व संयुक्त वस्तुने वस्तुपणे कहे. | एटले वस्तुने शब्दें बोलावतां सातभांगे बोलाववो माटे ए सप्तभंगी जेटलाज शब्दनयना भेद जाणवा ते सप्तभंगीनो स्वरूप पूर्वे कयुं छे. ए शब्दादिकनय वस्तुना पर्यायने अवलंबीने वस्तुना भावधर्मना ग्राहक छे, ते माटे वस्तुना भाव निक्षेपा ए नये मुख्य छे धुरना चार नयमां नामादिक त्रण निक्षेपा मुख्य छे ए शब्दनयर्नु स्वरूप कषु.

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