Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 291
________________ - - कहेवाना अधिकारी छे ए नयनुं किहां एक अर्थनय ए पण नाम छे ते अर्थ शब्दे द्रव्य लेवं तथा शब्दादिक त्रण नय ते शुद्ध नय छे केमके शब्दना अर्थनी एने मुख्यता छे पेहेला नय ते भेदपणे वचनने वांछे छे अने शब्दादिक नय ते । लिंगादिके अभेद बचने अभेद कहे तथा मिन्न वचने भिन्नार्थ कही माने अने समभिरूढ ते भिन्न शब्द तेने वस्तु पर्याय न माने तथा एवंभूत ते भिन्नगोचर पर्यायने भिन्न माने जे चेष्टाकरतो होय तेने घट कहे पण खूणे पङयो घट कहे ||नही चित्राम करतो होय तथा तेज उपयोगें वर्ततो होय तेने चित्रकार कहे पण तेज चित्रकार सुतो होय अथवा खावा | वेठो होय तेने चित्रकार न कहे केमक त उपयोग राहत छे माटे ए नय ते शब्द तथा अर्थने अभेदपणो माने छे अने, अर्थथी शून्य शब्द ते प्रमाण नथी अने शब्द प्रधान अर्थ ते द्रव्यने गौणपणे वर्तता शब्दादिक त्रण नय छे एम तत्त्वार्थ टीका मध्ये कयो छे. | ए सात नयने विषे पेहेलो नैगमनय ते सामान्य विशेष वेहुने माने छे संग्रहनय ते सामान्यने माने छे व्यवहारनय विशेषने माने छे अने द्रव्यार्थावलंबी छे तथा ऋजुसूत्र तो विशेष ग्राहक छे ए चार ते द्रव्यनय छे अने पाछला शब्दादिक त्रण नय ते पर्यायार्थिक विशेषावलंबी भावनय छे तथा शब्दादिक नय ते नाम स्थापना द्रव्य ए पेहेला त्रण निक्षेपाने अवस्तु माने छे “तिण्हं सदनयाणं अवत्थु" ए अनुयोगदार सूत्रनुं वचन छे ए साते नय परस्पर सापेक्षपणे ग्रहे ते समकेति जाणवा अने जो ए नय परस्पर विरोधी होय तो मिथ्यात्वी जाणवा तथा एकेका नयना सो सो भेदी थाय छे एम साते नयना मळी सातसो भेद थाय छे ए अधिकार श्रीअनुयोगद्वार सूत्रथी कह्यो छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305