Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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अर्थ - ते प्रथम ग्रंथिभेद करीने शुद्धश्रद्धावान् तथा शुद्ध ज्ञानी जे जीव ते प्रथम त्रण चोकडीनो क्षयोपशम करीने पाम्यो जे चारित्र ते ध्यानें एकत्व धयीने क्षपकश्रेणि मांडी अनुक्रमे घातिकर्म क्षय करीने केवल ज्ञान केवलदर्शन पामे. पछे ए सयोगी गुणें जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्टो आठ वरश उणापूर्वकोडी रहीने कोइक केवली समुद्धात करें, कोइक केवली समुद्धात न करे; पण आवर्जिकरण सर्व केवली करे ते आवर्जिकरणनुं खरूप कहे छे-इहां आत्मप्रदेशे रह्या जे कर्मदल ते पेहेला चलेछे, पछे उदीरणा थाय छे पछे भोगवी निर्जरे छे. तिहां केवलीने जिवारे तेरमें गुणठाणे अल्पायु रहे तिवारें आवर्जिकरण करे छे. ते आत्मप्रदेशगत कर्म्मदलने प्रति समयें असंख्यातगुण निर्जरा करवी छे तेला दलने आत्मषीर्ये करीने सर्व चलायमान करी मूके एवं जे वीर्यनुं प्रवर्तन ते आवर्जिकरण कहियें. एम करतां त्रण कर्म्मदल बधतां रह्या तो समुद्घात करे नहीतो न करे ते माटे आवर्जिकरण सर्व केवली करे. पछे तेरमा गुणठाणाने अंते योगनो रोध करीने अयोगी अशरीरी, अनाहारी अप्रकंप धनकृत आत्मप्रदेशी थको पांच लघुअक्षर जेटलो काल अयोगी गुणठाणे रद्दीने, शेषसत्तागत प्रकृति विद्यमान तथा अविद्यमान स्तिवक संक्रमें सत्ताथी खपावी, सकल पुद्गल संगपणाथी रहित थयी, तेहिज सभयें आकाश प्रदेशनी बीजी श्रेणिने अणफरसतो थको लोकांते सिद्ध कृतकृत्य संपूर्ण गुण प्रागभावी पूर्ण परमात्मा परमानंदी अनंतकेवलज्ञानमयी, अनंतदर्शनमयी, अरूपी सिद्ध थाय. उक्तं च उत्तराध्ययने "कहिं पहिया सिद्धा, कहिं सिद्धा पयडिया | कहिं योंदि चत्ताणं ॥ कत्थ गंतूण सिज्झई | अलोए पडिया सिद्धा, लोयग्गे य पइडिया ॥ इह वौदिं चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ||" इत्यादि ते सिद्ध एकांतिक आत्यंतिक,

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