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SARAKAARAM
संख्यात गुणहानि ५ असंख्यात गुणहानि ६ अनंत गुणहानि ए रीते छ प्रकारनी वृद्धि तथा छ प्रकारनी हानि ते सर्व द्रव्यां सदा समय समय थयी रही छे वृद्धि ते उपजबो अने हानि ते व्यय कहियें ए अगुरुलघु पणो कह्यो नहीं गुरु तथा नहीं लघु ते अगुरुलघु स्वभाव कहिथ ए सर्व द्रध्य मध्ये जे ते श्रीभगवतीसूत्रं “सधदधा सबगुणा सबपएसा सबपज्जवा सबद्धा अगुरुल हुआए" अगुरुलधु स्वभाबने आवरण नथी तथा आत्मा मध्ये जे अगुरुलघु गुण ते आत्माना सर्व प्रदेश क्षायक भाव थये सर्व गुण सामान्य पणे परिणमे पण अधिका ओछा परिणमे नही ते अगुरुलघुगुणतुं प्रवतन जाणवू ते अगुरुलघु गुणने गोत्रकर्म रोके के ए अगुरुलघु स्वभाव ते सर्व द्रव्यमां छे.
हवे गुणनी भावना कहे छ तिहां जेटला छए द्रव्यमां सरीखा गुण छे ते सामान्य गुण कहिये अने जे गुण एक द्रव्यमा छे अने बीजा द्रव्यमां नथी ते विशेष गुण कहिये जे गुण कोइक द्रव्यमा छे अने कोइक द्रव्यमां नथी ते हैं। साधारण असाधारण गुण कहिये एम ए छ द्रव्यमां अनंत गुण अनन्त पर्याय अनन्त स्वभाव सदा शाश्वता छे जेम
श्रीकेवली भगवंतें परूप्या ते सर्व जेरीतें छे तेरीतें सद्दहणा पूर्वक यथार्थ उपयोगधी श्रुतज्ञानादिकथी यथार्थ पणे हजाणवा सद्दहवा ए निश्चें ज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे जे जीव ज्ञान पाम्यो ते जीव विरति करे छे ते चारित्र कहिये ज्ञानर्नु फल विरतिपणो छे ते मोक्षर्नु तत्काल कारण छे..
हये निश्चेचारित्र अने व्यवहार चारित्रनो विचार कहे छे. तेमा प्रथम व्यवहार चारित्र ते जे प्राणातिपात विरमण दि प्रमुख पंचमहाप्रतरूप ते सर्वविरति कहिये अने स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रतादिक श्रावकना बारव्रत ते देशविरति
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