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पर्यायत्वेनेवागमे उक्तलादियं परिणतिः स्वकालत्वेन वर्तनात् स प्रत्यक्षं एवं तथा कालस्य भिन्नद्रव्यत्वेऽपि कालस्य कारणता अतीतानागतवर्तमानभवनं तु जीवादिद्रव्यस्यैव परिणतिरिति॥
अर्थ-सर्व द्रव्यने विषे स्वके पोतार्नु कारण परिणमन परावृत्ति के पलटणपणे गुणनी प्रवृत्तिरूप परिणमन छ | ते परिणति अनंति अनंत जातिनी अतीतकाले थइ छे अने अनंतिजातिनी एक वर्तमान काले छे अने वीजी अनागत योग्यतारूपपणे अनंतिछे ते वर्तमान परिणति ते अतीत थाय छे एटले ते परिणतिमध्ये वर्तमानपणानो व्यय अने अतीतपणानो उत्पाद तथा परिणतिपणे ध्रुव छे अने अनागतपरिणति ते वर्तमान थाय छे तिहां अनागतपणानो व्यय, वर्तमानपणानो उत्पाद अने छतिपणे ध्रुव अने अनागत कार्य योग्यता ते दूर हता ते आसन्न के. नजीकपणो पामे एटले दूरतानो व्यय अने नजीकतानो उत्पाद तथा अतीतमध्ये दूरतानो उत्पाद अने नजीकतानो व्यय ए रीते सर्व द्रव्यनेविषे अतीत वर्तमान तथा अनागतपणे परिणति छे, ते परिणमेज छे. ए द्रव्यने विष स्वकालरूप परिणमन छे, एर |उत्पाद व्ययनो त्रीजो भेद जाणवो.
इहां केटलाक कालनी अपेक्षा लेइने परप्रत्ययपणो कहे छे ते खोटो छे, कारण के कालद्रव्य जे छे, ते पंचास्तिकायनो|| पर्याय छे अने परिणतितो द्रव्यनो स्वधर्म छे, माटे काल ते स्वकालरूप वस्तुनो परिणाम तेनो भेद छ, अथवा कालने । भिन्न द्रव्य मानियें तोपण काल ते कारणपणे छे, अने अतीत, अनागत वर्समानरूप परिणति तेतो जीवादिक द्रव्यनो धर्म छे ते माटे ए उत्पाद व्यय पण स्वरूपज छे ए त्रीजो भेद थयो.
AKAKAR
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