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भाग वृद्धि ४ संख्यात गुण वृद्धि, असंख्यात गुण वृद्धि, ६ अनंत गुण वृद्धि. ए छ प्रकारनी वृद्धि ते सर्वद्रव्यना सर्वप्रदेशें सर्वपर्यायमा थाय. एकप्रदेशमां कोइक समय वधे छे कोइक समये घटे छे जेम परमाणुमा वर्णादिक वधे | घंटे छे तेम अगुरुलघुपणो पण वधेघटे छे. हानिनो व्यय छे तो वृद्धिनो उत्पाद छे. अथवा वृद्धिनो व्यय छे तो हानिनो उत्पाद छे पण अगुरुलघु ध्रुवनो ध्रुव छे. एम सर्वद्रव्यने विषे जाणवो. तिहां तत्त्वार्थटीकामां आकाशद्रव्यना अधिकारे कयुं छे ते लखिये छैयें. जिहां अलोकाकाशमध्ये अवगाहक जीव पुद्गलादिक द्रव्य नथी तिहां पण अगुरुलघुपर्यायवंतपणो अवश्य छे. ते अगुरुलघुनी अनित्यता अवश्य अंगीकारे छे अने ते अगुरुलघु ते पर्यायें तथा प्रदेशें अन्य अन्य के० बीजो बीजो थाय छे एटले पूर्व समयं अगुरुलघुनो व्यय अने वीजे समय नवा अगुरुलघुनो उत्पाद छे. जो ए रीते नवो उत्पाद व्यय गवेषिये नहीं तो अलोकाकाशनें विषे सलक्षण न्यून के० ओछो पडे जे उत्पाद व्यय ध्रुवता संयुक्त ते सत् कहियें अने जे द्रव्य होय ते सत्पणा संयुक्तज होय. माटे अगुरुलघुनुं परिणमन, सर्वद्रव्यमां सर्वपर्यायमां सर्वप्रदेशमां छे ए अगुरुलघुनो उत्पाद व्यय कह्यो ए हो अधिकार यो.
तथा भगवतीटीकायां तथा च अस्तिपर्यायतः सामर्थ्यरूपा विशेषपर्यायास्ते चानन्तगुणास्ते प्रतिसमयं निमित्तभेदेन परावृत्तिरूपाः तत्र पूर्वविशेषपर्यायाणां नाशः अभिनवविशेषपर्यायाणामुत्पादः पर्यायवत्वे ध्रुवत्वं इत्यादि सर्वत्र ज्ञेयं इति सप्तमः ॥