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१ हवे बार भावना कहे छे. शरीर कुटुंब धन परिवार सर्व विनाशी छे जीवनो मूल धर्म अविनाशी छे एम चिंतविq ते पहेली अनित्यभावना २ संसारमा मरणसमये जीवने शरण राखनार कोइ नथी. एक धर्मनो शरण छे ए, चिंत तू विq ते बीजी अशरण भावना ३ मारा जीवे संसारमा भमतां सर्व भवकीधा छे ए संसारथी हुँ केयारे छुटीश ए संसार
मारो नथी हुं मोक्षमयी छु एम विचारवं ते त्रीजी संसारभावना. ४ ए माहरो जीव एकलो भोगवशे एम चिंतवq ते | चोथी एकत्वभावना ५ आ संसारमा कोइ कोइनो नथी एम चिंतवते पांचमी अन्यत्वभावना ६ आ शरीर अपवित्र है | मलमूत्रनी खाण छे रोग-जराथी भयो छे ए शरीरथी हुँ न्यारो छ एम चिंतववो ते छट्ठी अशुचिभावना ७ रागद्वेपर अज्ञान मिथ्यात्व प्रमुख सर्व आश्रय छे एम चिंतवq ते सातमी आश्रवभावना ८ ज्ञानध्यानमां वर्त्ततो जीव नवा कर्म बांधे नही ते आठमी संवरभावना ९ ज्ञानसहित क्रियाते निर्जरानुं कारण छे ते नवमी निर्जराभावना १० चउदराज
लोकनुं स्वरूप विचार ते दशमी लोकस्वरूपभावना ११ संसारमा भमता जीवने समकित ज्ञाननी प्राप्ति पामवी दुर्लभ भीछे अथवा समकित पाम्यो पण चारित्र सर्व विरति परिणाम रूप धर्म पामवो दुर्लभ छे ते इग्यारमी बोधदुर्लभभावना. 15 १२ धर्मना कहेणहारगुरु तथा शुद्ध आगमर्नु साभलq एहवी जोगवाइ मलवि दोहेली छे ते बारमी धर्मदुर्लभभा-६ दवना एटले बार भावना कही ए चारित्रनुं स्वरूप संपूर्ण कडं.
एवो समकित सहित ज्ञान चारित्र ते मोक्षनु कारण छे तेना ऊपर भव्य प्राणीयें विशेषे उद्यम करवो अने जो तेवू