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थाय ते समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति शुलध्यान कहिये ए ध्यान ध्यावतां शेष दल खरण रूप क्रिया उच्छेदे अवगाहना देहमानमांथी त्रीजो भाग घटाडे शरीर मूकी इहांथी सात राज ऊपर लोकने अंते जाय सिद्ध धाय इहां शिष्य पूछे जे चौदमे गुणठाणे तो अक्रिय के हो सातराज उंचो गयो ए क्रिया केम करे छे तेने उत्तर जे सिद्ध तो अक्रिय छे परंतु पूर्व प्रेरणायें तुंबीने दृष्टांन्ते जीवमां चालघानो गुण छे धर्मास्तिकाय मध्ये प्रेरणा गुण हे तेथी कर्म रहित जीव मोक्षेजता लोकने अंसे जायी रहे इहां कोइ पूछे जे आगल उंचो अलोक छे तहां किम जातो नथी तेने उत्तर जे आगल धर्मास्तिकाय नथी माटे न जाय वली कोइ पुछे जे तो अधोगतियें अथवा तिरच्छी गतियें केम नथी जातो तेने उत्तर जे कर्मना भारधी रहित थयो हलुवो थयो माटे निधो तथा डाबो जिमणो न जाय कारण के प्रेरक कोइ नथी तथा कंपे नही केमके अक्रिय छे माटं तथा कोइ पूछे जे सिद्धने कर्म केम लागता नधी तेने कहे छे से कर्म तो जीवने । अज्ञानथी तथा योगथी लागे छे ते सिद्धना जीवने अज्ञान तथा योग नथी माटे कर्म लागे नही ए चार ध्याननों अधिकार को.
हवे वली बीजा चार ध्यान कहे छे १ पदस्थ २ पिंडस्थ र रूपस्थ. ४ रुपातीत तेमां पहेलुं पदस्थ ध्यान कहे छे जे अरिहंतादिक पांच परमेष्टीना गुण संभारे तेनो चिसमां ध्यान करे ते पदस्थ ध्यान. २ पिंडस्थ केहर्ता शरीरमा रह्यो जे आपणों जीव तेमां अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय अने साधुपणाना गुण सर्व छे एहवो जे ध्यान ते पिंडस्थ ध्यान अथवा गुणीना गुण मध्ये एकत्वता उपयोग करवी ते पिंडस्थ ध्यान. ३ रूपमा रह्यो थको पण ए मारो जीव अरूपी